"हमले का फ़ैसला दो लोगों का था, लेकिन मास्टरमाइंड एक ही है..." - हमास कमांडर ने कैसे रची थी इज़रायल पर हमले की साज़िश

मोहम्मद दईफ़ ने ग़ाज़ा स्थित इस्लामिक विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की थी, जिसके दौरान उसने भौतिकी, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान की पढ़ाई की थी. दईफ़ की रुचि कला में भी थी, और वह विश्वविद्यालय की मनोरंजन कमेटी की सदारत करने के अलावा हास्य नाटकों में मंच पर अभिनय भी करता रहा है.

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मोहम्मद दईफ़ की सिर्फ़ तीन तस्वीरें उपलब्ध हैं - एक तस्वीर 20-30 साल की उम्र की, दूसरी नकाब पहने हुए, और तीसरी उसकी परछाई की है...
नई दिल्ली:

हमास द्वारा पिछले हफ़्ते किए गए भीषण हमले को इज़रायल भले ही 9/11 (अमेरिका पर वर्ष 2001 में 11 सितंबर को हुआ आतंकवादी हमला) जैसा क्षण बता रहा हो, लेकिन इस हमले के पीछे जिस शख्स का दिमाग लगा है, यानी हमास का आतंकवादी मोहम्मद दईफ़, इस हमले को 'अल अक़्सा फ़्लड' का नाम दे रहा है. शनिवार को जिस वक्त हमास ने ग़ाज़ा पट्टी से हज़ारों रॉकेट इज़रायल पर दागे थे, उसी वक्त एक ऑडियो टेप ब्रॉडकास्ट किया गया था, जिसमें इज़रायल के मोस्ट वॉन्डेट शख्स ने यह नाम इस्तेमाल किया था, जिससे इशारा मिलता है कि हमास का हमला येरूशलम की अल अक़्सा मस्जिद पर इज़रायल द्वारा किए गए हमले का बदला था.

समाचार एजेंसी रॉयटर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ग़ाज़ा में मौजूद हमास के एक करीबी सूत्र से मिली जानकारी के मुताबिक, मई, 2021 में इस्लाम की तीसरी सबसे पवित्र इमारत, यानी अल अक़्सा मस्जिद पर इज़रायली हमले के बाद मोहम्मद दईफ़ ने इस हमले की साज़िश रचनी शुरू की थी. हमास के सूत्र ने बताया कि अल अक़्सा मस्जिद पर रमज़ान माह के दौरान इज़रायल द्वारा हमला किए जाने, नमाज़ियों पर हमला कर पीटने, बुज़ुर्गों को भी मस्जिदों से घसीटकर बाहर निकालने के दृश्यों ने मोहम्मद दईफ़ के भीतर गुस्से को भड़का दिया था. अब दो साल से ज़्यादा वक्त के बाद हमास द्वारा किए गए हमले ने इज़रायल को युद्ध की घोषणा करने और जवाबी हमला करने के लिए मजबूर कर दिया.

इज़रायल द्वारा हत्या करवाए जाने की सात कोशिशों से बच चुका दईफ़ बहुत कम ही बोलता है, और आम जनता के बीच तो कभी दिखता ही नहीं, जब हमास TV चैनल ने बताया कि शनिवार को दईफ़ बोलने वाला है, फिलस्तीनी समझ गए थे कि कुछ बड़ा होने वाला है.

अपने ऑडियो संदेश में दईफ़ ने कहा, "आज अल अक़्सा का गुस्सा, हमारे लोगों का गुस्सा और मुल्क का गुस्सा फूट रहा है... हमारे मुजाहिदीन (लड़ाके), आज आपका दिन है, जब आप इस अपराधी को समझा दें कि उसका वक्त खत्म हो गया है..."

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गौरतलब है कि दईफ़ इतना ज़्यादा छिपा रहता है कि आज तक उसकी सिर्फ़ तीन तस्वीरें उपलब्ध हैं - एक तस्वीर तब की है, जब वह 20-30 साल का था, दूसरी तस्वीर नकाब पहने हुए दिखी है, और तीसरी तस्वीर उसकी परछाई की है, जिसे ऑडियो संदेश के प्रसारण के वक्त भी इस्तेमाल किया गया.

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दईफ़ का ठिकाना कोई नहीं जानता, हालांकि माना जाता है कि वह ग़ाज़ा में ही बस्ती के नीचे बनी सुरंगों की भूलभुलैया में बसा हुआ है. इज़रायली सुरक्षा सूत्र का कहना है कि दईफ़ इस हमले (शनिवार को हुआ हमला) की साज़िश रचने और अंजाम देने में सीधे तौर पर शामिल था.

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लगे थे दो दिमाग, लेकिन मास्टरमाइंड एक ही है...

समाचार एजेंसी रॉयटर के मुताबिक, फिलस्तीनी सूत्रों ने बताया है कि ग़ाज़ा में रातभर जिन घरों पर इज़रायली हवाई हमला किया गया था, उनमें से एक घर दईफ़ के पिता का भी था, और इस हमले में दईफ़ के भाई और परिवार के दो अन्य सदस्य मारे गए.

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हमास के एक करीबी सूत्र के अनुसार, हमले की साज़िश रचने का फ़ैसला ग़ाज़ा में हमास के नेता येह्या सिनवार के साथ हमास का अल क़ासम ब्रिगेड की कमान संभालने वाले दईफ़ ने मिलकर लिया था, लेकिन सभी के सामने साफ़ था कि असली मास्टरमाइंड कौन है. समूचे ऑपरेशन की जानकारी भी गिने-चुने हमास लीडरान को ही थी. सूत्र ने साफ़-साफ़ कहा, "दिमाग दो थे, लेकिन मास्टरमाइंड एक ही था..."

हमास के सोचने के तरीके से वाकिफ़ एक क्षेत्रीय सूत्र के अनुसार, इस हमले को लेकर बेहद गोपनीयता बरती गई थी, और इसके वक्त, प्रकार या अन्य कोई जानकारी ईरान तक को नहीं थी, जो इज़रायल का जगज़ाहिर दुश्मन है, और हमास के लिए धन, ट्रेनिंग और हथियारों का अहम स्रोत है. ईरान सिर्फ़ इतना जानता था कि हमास एक ऑपरेशन की योजना बना रहा है. सूत्र ने बताया कि ईरान को बड़े ऑपरेशन की तैयारी के बारे में ख़बर थी, लेकिन किसी भी संयुक्त ऑपरेशन रूम में इसके बारे में कोई बातचीत नहीं की गई, जिसमें हमास, फिलस्तीनी नेतृत्व, ईरान-समर्थित लेबनानी आतंकवादी हिज़बुल्लाह और ईरान मौजूद रहते हैं.

ईरान के शीर्ष नेता आयतुल्ला अली खमैनी ने मंगलवार को कहा था कि इज़रायल पर हमले में ईरान की शिरकत नहीं थी. अमेरिका का कहना है कि ईरान की मिलीभगत तो थी, लेकिन कोई खुफिया जानकारी या सबूत नहीं है, जो हमलों में ईरान की प्रत्यक्ष भागीदारी की ओर इशारा करता हो.

दईफ़ ने जो योजना बनाई थी, उसमें इज़रायल को लम्बे अरसे तक धोखे में रखना शामिल था. इज़राइल को भरोसा दिलाया गया था कि हमास की दिलचस्पी युद्ध शुरू करने में कतई नहीं है, और वह ग़ाज़ा में आर्थिक विकास पर फोकस कर रहा है, जहां हमास की ही सत्ता है.

हमास के एक करीबी सूत्र ने बताया कि इससे एक तरफ इज़रायल गज़ान मज़दूरों को आर्थिक इनाम देना शुरू कर चुका था, वहीं दूसरी तरफ़ इज़रायली सेना की आंखों के सामने ही हमास अपने लड़ाकों को प्रशिक्षित और ड्रिल करता रहा.

हमास में विदेशी संबंधों से जुड़े विभाग के प्रमुख अली बराका का कहना है, "हमने इस जंग के लिए दो साल तैयारी की है..."

अपने ऑडियो संदेश में शांत आवाज़ में बोलते हुए दईफ़ ने कहा था कि हमास ने कई बार इज़रायल को चेताया है कि वह फिलस्तीनियों के ख़िलाफ़ गुनाह करने बंद करे, उन कैदियों को रिहा करे, जिनके साथ दुर्व्यवहार और अत्याचार किए जाते हैं, और फिलस्तीनी ज़मीन पर कब्ज़े को तत्काल रोक दे.

दईफ़ ने कहा, "इज़रायल हर रोज़ वेस्ट बैंक में हमारे गांवों, कस्बों और शहरों पर हमला करता है, घरों पर हमला करता है, लोगों को मारता, ज़ख्मी करता है, सब कुछ तहसनहस करता है, और लोगों को हिरासत में भी ले लेता है... इसके अलावा, इज़रायल हमारी हज़ारों एकड़ ज़मीन भी कब्ज़ा लेता है, हमारे लोगों को उजाड़ देता है, और उन्हें नई बस्तियां बसानी पड़ती हैं... और ग़ाज़ा पर भी इज़रायल का आपराधिक कब्ज़ा जारी है..."

हमेशा छिपा रहता है दईफ़...

एक साल से भी ज़्यादा वक्त से वेस्ट बैंक में बहुत अफरातफरी मची हुई है. वेस्ट बैंक लगभग 100 किलोमीटर (60 मील) लम्बा और 50 किलोमीटर चौड़ा इलाका है, जो 1967 में इज़रायल के कब्ज़े के बाद से इज़रायल-फिलस्तीनी संघर्ष का केंद्र रहा है.

दईफ़ ने कहा कि हमास ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी 'कब्ज़े के गुनाहों' को खत्म करवाने का अनुरोध किया था, लेकिन इज़रायल ने अपनी तरफ़ से उकसावे की कार्रवाई बढ़ा दी. दईफ़ ने यह भी कहा कि हमास ने अतीत में फिलस्तीनी कैदियों को रिहा करने के लिए भी इज़रायल से मानवीय समझौता करने का आग्रह किया था, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया था.

दईफ़ ने कहा, "(इज़रायल द्वारा) कब्ज़े की घिनौनी कार्रवाई जारी रखने और अंतरराष्ट्रीय कानूनों और प्रस्तावों को खारिज कर दिए जाने को देखते हुए, (इज़रायल को) अमेरिकी और पश्चिमी मुल्कों के समर्थन और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी को देखते हुए, हमने तय किया है कि अब यह सब खत्म कर डालेंगे..."

वर्ष 1948 में हुए अरब-इज़रायल युद्ध के बाद बनाए गए खान यूनिस शरणार्थी शिविर में वर्ष 1965 में जन्मे मोहम्मद मसरी को वर्ष 1987 में शुरू हुए पहले इन्तिफ़ादा या फिलस्तीनी विद्रोह के दौरान हमास में शामिल होने पर मोहम्मद दईफ़ के नाम से जाना जाने लगा था.

हमास के एक सूत्र ने बताया कि दईफ़ को वर्ष 1989 में इज़रायल ने गिरफ़्तार किया था और उस वक्त वह लगभग 16 महीने हिरासत में रहा था.

मोहम्मद दईफ़ ने ग़ाज़ा स्थित इस्लामिक विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की थी, जिसके दौरान उसने भौतिकी, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान की पढ़ाई की थी. दईफ़ की रुचि कला में भी थी, और वह विश्वविद्यालय की मनोरंजन कमेटी की सदारत करने के अलावा हास्य नाटकों में मंच पर अभिनय भी करता रहा है.

धीरे-धीरे हमास में तरक्की के रास्ते पर बढ़ते हुए मोहम्मद दईफ़ ने समूह के सुरंगों के नेटवर्क और बम बनाने में विशेषज्ञता विकसित की. दईफ़ कई दशक से इज़रायल की मोस्ट वॉन्टेड लिस्ट में शीर्ष पर है, और उसे आत्मघाती बम विस्फोटों में दर्जनों इज़रायलियों की मौत के लिए व्यक्तिगत रूप से ज़िम्मेदार ठहराया गया है.

दईफ़ के लिए छिपे रहना बेहद ज़रूरी है. हमास सूत्रों के मुताबिक, इज़रायल द्वारा की गई हत्या के एक कोशिश के दौरान दईफ़ ने एक आंख गंवा दी थी, और उसके एक पैर में भी गंभीर चोटें आई थीं. दईफ़ की पत्नी, उसका सात माह का बेटा और तीन साल की बेटी वर्ष 2014 में इज़रायली हवाई हमले में मारे गए थे.

हमास के हथियारों के विंग को चलाते-चलाते भी ज़िन्दा रह पाने की वजह से दईफ़ ने फ़िलस्तीन में 'कहानियों का नायक' का दर्जा हासिल कर लिया था. जो वीडियो सामने आते हैं, उनमें वह नकाब पहने होता है, या सिर्फ़ उसकी परछाई दिखाई देती है. हमास के एक करीबी सूत्र के मुताबिक, दईफ़ स्मार्टफोन जैसी आधुनिक डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल भी नहीं करता है.

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