यूरोपीय संसद में दक्षिणपंथियों की बढ़ी ताकत, फैसलों में होगी मुश्किल

इटली में पीएम मिलोनी की धुर दक्षिणपंथी पार्टी ब्रदर्स ऑफ़ इटली को मिली भारी क़ामयाबी की वजह से यूरोपीय संसद में मिलोनी का बहुत अधिक असर रहेगा.

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यूरोपीय संसद के चुनावी नतीजे बता रहे हैं कि यूरोपीय यूनियन का जो विधायी काम है यानि कि नियमों को बनाने और क़ानूनी प्रावधानों को तय करने की जो प्रक्रिया है वो अधिक जटिल हो सकती हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि इस चुनाव में एक मिलाजुला नतीजा देखने को मिला है. यूरोपीय संघ के 27 में से कई देशों में जहां धुर दक्षिणपंथी दलों को अच्छी ख़ासी क़ामयाबी मिली है. वहीं कई देशों में मध्यमार्गी-दक्षिणपंथी ने अपनी पकड़ बरक़रार रखी है. 

कई, माल्टा, रोमानिया और स्वीडेन देशों में वामपंथी पार्टियों को भी आश्चर्यजनक तौर पर बढ़त मिली है. फ्रांस में धुर-दक्षिणपंथी पार्टियों को भारी जीत मिली है जहां शिकस्त के बाद राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रां ने देश में संसदीय चुनाव का ऐलान कर दिया जो 30 जून और 7 जुलाई को होगा. जर्मनी में ऑलफ़ शॉल्ज़ की पार्टी को काफ़ी नुक्सान उठाना पड़ा है. आस्ट्रिया में भी दक्षिणपंथी पार्टियों ने पहले के मुक़ाबले काफ़ी बढ़त हासिल की है. हालांकि, यूरोपीय संसद पर प्रो-यूरोपीयन सेंटर पार्टियों ने अपना नियंत्रण बरकरार रखा है लेकिन दक्षिणपंथी पार्टियों की बढ़ी ताक़त के बूते उन्हें क़ानूनों को पास कराने में भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.

इटली में पीएम मिलोनी की धुर दक्षिणपंथी पार्टी ब्रदर्स ऑफ़ इटली को मिली भारी क़ामयाबी की वजह से यूरोपीय संसद में मिलोनी का बहुत अधिक असर रहेगा. नीदरलैंड्स में फॉर राइट पार्टी दूसरे नंबर पर रही लेकिन यहां भी उनकी ताक़त में इज़ाफ़ा हुआ है. कुल मिला कर दक्षिणपंथी पार्टियों की ताक़त पढ़ने से इमिग्रेशन आदि जैसे मुद्दे पर यूरोपीय देशों के बीच संसद में भारी खींचतान देखने को मिल सकता है. दक्षिणपंथी पार्टियां इमिग्रेशन के ख़िलाफ़ सख़्त नीतियां चाहती हैं सेंटर-राइट यूरोपीय पीपुल्स पार्टी जिसे कि स्पेन और पोलैंड में भी सबसे अधिक सीट मिली है, यूरोपीय संसद में पहुंचने वाले इनके सांसदों को तादाद सबसे अधिक है. यूरोपीय कमीशन के प्रेसिडेंट का चयन यूरोपीय संसद के ज़रिए ही होता है.

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ऐसे में उर्सुला वोन डेर लेयेन जो कि मौजूदा प्रेसिडेंट हैं और दूसरे कार्यकाल की कोशिश में हैं, उनको यूरोपीय पीपुल्स पार्टी से काफ़ी मदद मिलेगी. यूरोपीय पीपुल्स पार्टी, सोशलिस्ट और डेमोक्रेट्स, सेंटरिस्ट रिन्यू गुट और ग्रीन्स को मिला कर 462 सीटें आयी हैं जो कुल सीटों का 64 फ़ीसदी हिस्सा है. पिछली बार ये 69 फ़ीसदी था. उर्सुला वोन डेर लेयेन को जीत के लिए नए चुनकर आए 720 में से 361 का वोट चाहिए होगा. ग्रीन्स ने उर्सुला को 2019 में भी समर्थन नहीं दिया था. इसलिए इस बार भी उनसे समर्थन की उम्मीद नहीं है. उर्सुला को समर्थन देने वाले पूरे गुट में से भी 10-15 फ़ीसदी सांसद अक्सर वोट नहीं करते हैं इसलिए मामला नज़दीकी हो सकता है.

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जिस तरह से एक तरफ़ दक्षिणपंथी और दूसरी तरफ़ वामपंथी पार्टियों की ताक़त भी संसद में बढ़ी है ज़ाहिर ही बात है कि इससे मध्यमार्गी पार्टियों नीति निर्धारण में भी दोनों तरफ़ से चुनौतियां आएंगी. संसद में प्रो-यूरोपीयन पार्टियों को मामूली बहुमत हासिल होने की वजह से महत्वाकांक्षी क्लाइमेंट चेंज क़ानून को पास कराना मुश्किल हो सकता है. आर्थिक मुद्दों पर यूरोपीय देशों के बीच समन्वय बढ़ने की बजाय धीमा पड़ेगा. अब जैसे फ़्रांस में दक्षिणपंथियों के उभार के साथ ही मार्केट बहुत नीचे चला गया और इसका असर यूरोप के दूसरे देशों के बाज़ार पर भी पड़ा. यूरोपीय यूनियन दुनिया का सबसे बड़ा इकोनॉमिक ब्लॉक है और ज़ाहिर सी बात है कि जब यूरोपीय संसद में क़ानूनों को पास कराने में दिक़्कत आएगी तो इसका असर दुनिया की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा. वो इसलिए क्योंकि यूरोपीय यूनियन एक ब्लॉक के तौर पर दुनिया के देशों से जो भी समझौता या संधि करता है उसे यूरोपीय संसद ही मंज़ूरी देती है.

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