तालिबान का एक और तुगलकी फरमान! अफगानिस्तान की यूनिवर्सिटीज में महिलाओं की लिखीं किताबें बैन

अफगानिस्तान में तालिबान ने विश्वविद्यालयों को यह भी बताया है कि उन्हें अब 18 विषयों को पढ़ाने की अनुमति नहीं होगी. तालिबान के एक अधिकारी ने कहा कि ये विषय शरिया के सिद्धांतों और सिस्टम की नीति के खिलाफ हैं- रिपोर्ट

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तालिबान का एक और तुगलकी फरमान!
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  • तालिबान सरकार ने अफगानिस्तान के विश्वविद्यालयों से महिलाओं द्वारा लिखी गई सभी किताबों को हटा दिया है
  • अफगानिस्तान में कुल 680 किताबों को शरिया के खिलाफ मानकर तालिबान ने प्रतिबंधित कर दिया है
  • तालिबान ने 18 विषयों को विश्वविद्यालयों में पढ़ाने पर प्रतिबंध लगाया, इन्हें शरिया सिद्धांतों के खिलाफ बताया
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तालिबान का शासन यानी महिलाओं पर अत्याचार, उनके लिए न्यूनतम मानवाधिकार की भी इजाजत नहीं. अफगानिस्तान की सत्ता में 2021 में लौटने के बाद से तालिबान ठीक यही कर रहा है. तालिबान सरकार ने एक नए बैन लगाया है. अब अफगानिस्तान के सभी विश्वविद्यालय से महिलाओं द्वारा लिखी गई किताबों को हटा दिया गया है. उसने मानवाधिकारों और यौन उत्पीड़न के बारे में पढ़ाई को भी गैरकानूनी घोषित कर दिया है. यह रिपोर्ट बीबीसी से छापी है.

तालिबान सरकार ने कुल मिलाकर अफगानिस्तान में 680 किताबों को "शरिया विरोधी और तालिबान नीतियों" के कारण "चिंताजनक" करार देते हुए बैन कर दिया है. इनमें से लगभग 140 किताबों को महिला लेखकों ने लिखा है. रिपोर्ट के अनुसार बैन किए गए एक किताब केमिस्ट्री लैब में सुरक्षा के टाइटल वाली भी है.

ऐसा लगता है कि महिलाओं की किताबों के साथ-साथ ईरान के लेखकों या ईरान से छपने वाली किताबों को भी टारगेट पर लिया गया है. 

इसके अलावा वहां के विश्वविद्यालयों को यह भी बताया गया कि उन्हें अब 18 विषयों को पढ़ाने की अनुमति नहीं है. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार तालिबान के एक अधिकारी ने कहा कि ये विषय शरिया के सिद्धांतों और सिस्टम की नीति के खिलाफ हैं.

गौरतलब है कि इसी सप्ताह, तालिबान के सर्वोच्च नेता के आदेश पर कम से कम 10 प्रांतों में फाइबर-ऑप्टिक इंटरनेट पर बैन लगा दिया गया था. तालिबान के अधिकारियों ने कहा कि अनैतिकता को रोकने के लिए यह कदम उठाया गया है.

काबुल यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर ने बीबीसी को बताया कि ऐसी परिस्थितियों में, उन्हें तालिबान सरकार द्वारा लगाए गए 'क्या करें और क्या न करें' वाले आदेश को ध्यान में रखते हुए टेक्स्टबुक चैप्टर खुद तैयार करने के लिए मजबूर होना पड़ता है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या इन चैप्टर्स को वैश्विक मानकों के अनुरूप तैयार किया जा सकता है या नहीं.

(इनपुट- बीबीसी)

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