पाकिस्तान के PM शहबाज शरीफ की राह नहीं आसान, सामने होंगी ये चुनौतियां

वर्ष 2018 के चुनाव में इमरान खान की पीटीआई से पीएमएल-एन की हार के बाद शहबाज ने 2018 से 2022 तक नेता प्रतिपक्ष के रूप में काम किया.

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शहबाज शरीफ की पाकिस्तान की सत्ता में वापसी
इस्लामाबाद:

शहबाज शरीफ एक चतुर राजनीतिज्ञ और एक अच्छे प्रशासक के रूप में जाने जाते हैं. बार-बार तख्तापलट के लिए बदनाम देश की शक्तिशाली सेना के साथ अपने सौहार्दपूर्ण संबंधों और भाग्य के कारण वह नकदी संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद पर दूसरी बार आसीन हुए हैं. पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के अध्यक्ष 72 वर्षीय शहबाज शरीफ पूर्व प्रधानमंत्री 74 वर्षीय नवाज शरीफ के छोटे भाई है और उनके बाद पार्टी में उनका दूसरा स्थान है.

नवाज अक्टूबर में पाकिस्तान लौटे थे और पिछले साल, 2024 में रिकॉर्ड चौथी बार प्रधानमंत्री बनकर इतिहास रचने की कोशिश कर रहे थे. हालांकि, आठ फरवरी के चुनाव के नतीजों ने नवाज शरीफ के चौथी बार प्रधानमंत्री बनने के सपने को तोड़ दिया. पीएमएल-एन अपने दम पर सरकार बनाने की उम्मीद कर रही थी, लेकिन 336 सदस्यीय नेशनल असेंबली में जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी द्वारा समर्थित स्वतंत्र उम्मीदवारों से पीछे रह गई और प्रत्यक्ष निर्वाचित 265 सीट में से केवल 75 सीट पर ही जीत दर्ज कर सकी.

पाकिस्तान की सत्ता में की वापसी

चुनाव के बाद त्रिशंकु संसद होने के कारण पीएमएल-एन के पास खान की पीटीआई को सत्ता में लौटने से रोकने के लिए गठबंधन सरकार बनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. नवाज ने शहबाज को गठबंधन सरकार के गठन पर अन्य समान विचारधारा वाले दलों के साथ बातचीत करने का जिम्मा सौंपा. हालांकि, पीएमएल-एन को जल्द ही एहसास हो गया कि नवाज शरीफ की उम्मीदवारी का विरोध हो रहा है. इस प्रकार, नवाज शरीफ के पास पिछले महीने अपने छोटे भाई को पीएमएल-एन और बिलावल भुट्टो-जरदारी के नेतृत्व वाली पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नामित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था.

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पार्टी सूत्रों के मुताबिक नवाज गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने में सहज नहीं थे और उन्होंने अपने छोटे भाई के लिए प्रधानमंत्री पद पर अपना दावा छोड़ दिया. शहबाज को शक्तिशाली सेना का समर्थन भी प्राप्त है. शहबाज ने कथित तौर पर विभिन्न अवसरों पर अपने बड़े भाई को किनारे करकर प्रधानमंत्री बनने के शक्तिशाली प्रतिष्ठान के कई प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया था.

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शहबाज शरीफ के सामने हैं ये चुनौतियां

शहबाज को बड़ी परियोजनाओं को तेजी से पूरा करने के लिए जाना जाता है. इसकी वजह से विकास योजनाओं के लिए ‘शहबाज शरीफ गति' नाम से एक नया वाक्यांश लोकप्रिय है. पंजाब के मुख्यमंत्री (2008-2013 और 2013-2018) के रूप में उनके लगातार दो कार्यकाल के दौरान, सबसे अधिक आबादी वाले पंजाब प्रांत में अंडरपास, ओवरहेड ब्रिज और जन परिवहन प्रणालियों का एक नेटवर्क तैयार किया गया और संबंधित परियोजनाओं को रिकॉर्ड समय में पूरा किया गया.

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लेकिन पीएम के तौर पर उनके सामने कई सारी चुनौतियां हैं. देश एक हजार अरब रुपये से अधिक के बजटीय घाटे का सामना कर रहा है. ऐसे में देश को इस घाटे से निकलाना सबसे बड़ी चुनौती है. पाकिस्तान के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने घोषणा की है कि उनका लक्ष्य 2030 तक जी20 सदस्यता हासिल करना है. शहबाज ने कहा कि सरकार देश को मौजूदा संकट से बाहर निकालने के लिए प्रतिबद्ध है.

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शहबाज ने पांच शादियां की हैं

शहबाज का जन्म सितंबर 1951 में लाहौर में एक पंजाबी भाषी कश्मीरी परिवार में हुआ और उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई गवर्नमेंट कॉलेज यूनिवर्सिटी, लाहौर से की. उनका परिवार व्यापार के लिए कश्मीर के अनंतनाग से आया और पाकिस्तान जाने से पहले 20वीं सदी की शुरुआत में पंजाब के अमृतसर जिले के जाति उमरा गांव में बस गया. शहबाज ने पांच शादियां की हैं, लेकिन फिलहाल उनकी दो पत्नियां- नुसरत और तहमीना दुरानी हैं. शहबाज के दो बेटे और तीन बेटियां हैं.

पंजाब के मुख्यमंत्री का पद भी है संभाला

शहबाज परिवार के विस्तृत व्यवसाय को देखते हैं. वह 1980 के दशक के अंत में राजनीतिक परिदृश्य में आये जब उन्हें 1988 में पंजाब विधानसभा के सदस्य के रूप में चुना गया. शहबाज ने 1997 से 1999 तक पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया, तब उनके भाई प्रधानमंत्री के रूप में अपना दूसरा कार्यकाल पूरा कर रहे थे, लेकिन सेना के साथ उनका मतभेद हो गया. नवाज शरीफ सरकार का 1999 में जनरल परवेज मुशर्रफ द्वारा तख्तापलट किए जाने के बाद शहबाज ने तत्कालीन सैन्य शासक के साथ समझौता किया और परिवार के साथ सऊदी अरब में आठ साल निर्वासन में बिताए. परिवार 2007 में पाकिस्तान लौट आया. शहबाज ने 2008 में दूसरी बार पंजाब के मुख्यमंत्री का पद संभाला और 2013 में तीसरी बार इस पद पर आसीन हुए.

शहबाज ने 2018 से 2022 तक नेता प्रतिपक्ष के रूप में काम किया

पनामा पेपर्स मामले में 2017 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पद के लिए अयोग्य करार दिए जाने के बाद पीएमएल-एन ने शहबाज को अपना अध्यक्ष नियुक्त किया. वर्ष 2018 के चुनाव में इमरान खान की पीटीआई से पीएमएल-एन की हार के बाद शहबाज ने 2018 से 2022 तक नेता प्रतिपक्ष के रूप में काम किया और खुद को एक चतुर नेता के रूप में स्थापित किया.

भ्रष्टाचार के कई मामलों का सामना करना पड़ा

यह दौरा शरीफ परिवार के लिए काफी कठिन रहा क्योंकि नवाज शरीफ को उनकी बेटी के साथ भ्रष्टाचार के दो अलग-अलग मामलों में दोषी ठहराया गया और जेल में डाल दिया गया. शहबाज को खुद भ्रष्टाचार के कई मामलों का सामना करना पड़ा और उन्हें महीनों तक सलाखों के पीछे रखा गया. हालांकि, शहबाज ने संयम बनाए रखा और जेल में बंद अपने भाई को इलाज के लिए लंदन भेजने की व्यवस्था की. कानूनी और राजनीतिक मोर्चों पर लड़ते हुए उन्होंने कड़ी मेहनत से अपना दिन आने का इंतजार किया जो तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान की मूर्खता पूर्ण कदमों के कारण अधिक तेजी से आ गया, क्योंकि इमरान खान ने शक्तिशाली सेना के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था.

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(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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