- रूस और पाकिस्तान ने कराची में पाकिस्तान स्टील मिल्स को पुनर्जीवित करने के लिए एक औद्योगिक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.
- पाकिस्तान स्टील मिल्स का निर्माण सन् 1971 में पूर्व सोवियत संघ की मदद से हुआ था और यह दोनों देशों के संबंधों का प्रतीक है.
- स्टील मिल को 2008-09 में 16.9 अरब पाकिस्तानी रुपये का घाटा हुआ था, जो पांच वर्षों में बढ़कर 118.7 अरब पाकिस्तानी रुपये हो गया.
रूस और पाकिस्तान, एक भारत का अजीज दोस्त, दूसरा कट्टर दुश्मन, लेकिन अब नई दिल्ली का रणनीतिक साझेदार उसके दुश्मन की तरफ बढ़ चला है. जो जानकारी आ रही है उसके मुताबिक रूस ने पाकिस्तान के साथ स्टील मिल्स प्रोजेक्ट के लिए एक समझौते पर साइन किया है. रूस में पाकिस्तानी दूतावास की तरफ से शुक्रवार को जानकारी दी गई है कि कराची में पाकिस्तान स्टील मिल्स (पीएसएम) को बहाल करने के लिए एक प्रोटोकॉल पर दोनों देशों ने साइन किए हैं. इसके साथ ही दोनों ने अपनी 'लॉन्ग स्टैंडिंग इंडस्ट्रीयल पार्टनरशिप' की पुष्टि की है.
चीन भी था रेस में
चीन भी पाकिस्तान स्टील मिल्स (पीएसएम) प्रोजेक्ट का टेंडर हासिल करने की दौड़ में था. इसका निर्माण असल में सोवियत संघ की मदद से हुआ था. पाकिस्तान की न्यूज एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस ऑफ पाकिस्तान (एपीपी) की रिपोर्ट के अनुसार, कराची में पीएसएम को फिर से जिंदा करने के समझौते पर शुक्रवार को मॉस्को स्थित पाकिस्तानी दूतावास में साइन किए गए हैं. एपीपी ने कहा है कि इस प्रोजेक्ट का मकसद स्टील प्रोडक्शन को फिर से शुरू करना और उसका विस्तार करना है. इसकी वजह से दोनों देशों के रिश्तों में एक नया अध्याय शुरू होगा.
रूस ने ही लॉन्च किया था प्रोजेक्ट
प्रधानमंत्री के स्पेशल असिस्टेंट हारून अख्तर खान जो इन दिनों रूस की यात्रा पर हैं, ने कहा, 'रूस के सहयोग से पीएसएम को रिवाईवल हमारे साझा इतिहास और एक मजबूत औद्योगिक भविष्य के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है.' प्रेस सूचना विभाग की तरफ से जारी एक बयान में कहा गया है कि पीएसएम का निर्माण सबसे पहले सन् 1971 में पूर्व सोवियत संघ की मदद से किया गया था और यह पाकिस्तान-रूस संबंधों का एक स्थायी प्रतीक बना हुआ है.
द एक्सप्रेस ट्रिब्यून अखबार की रिपोर्ट के अनुसार साल 2008 में पीएसएम का पतन शुरू हुआ था. इसके कारण हजारों नई नियुक्तियां और वैश्विक मंदी शामिल थी. स्टील मिल को 2008-09 में 16.9 अरब पाकिस्तानी रुपये का घाटा हुआ था, जो पांच वर्षों में बढ़कर 118.7 अरब पाकिस्तानी रुपये हो गया.
इमरान खान ने की थी कोशिश
पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) और पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) की सरकारें, जो 2008 से 2018 तक सत्ता में रहीं, इस औद्योगिक क्षेत्र को कुशलतापूर्वक चलाने में असफल रहीं. बाद में, इमरान खान के नेतृत्व वाली पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) सरकार ने इसे पुनर्जीवित करने की पहल शुरू की. इससे चीन और रूस के बीच ठेका पाने की होड़ मच गई. शुरुआत में, पीटीआई सरकार चीन के पक्ष में थी और उसने एक चीनी कंपनी के साथ बातचीत शुरू की थी, लेकिन बातचीत सफल नहीं हो सकी.
लगातार बढ़ता गया घाटा
दूसरी ओर, रूस का दावा है कि चूंकि प्रोजेक्ट का निर्माण उन्होंने किया था, इसलिए वही इस बीमार यूनिट को फिर से जिंदा करने के लिए सबसे सही थे. साल 2007-08 तक तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल के दौरान वित्तीय वर्ष पीएसएम का प्रॉफिट 9.54 अरब पाकिस्तानी रुपये था. लेकिन अगले 10 सालों में इसका घाटा बढ़ता गया और 31 मई, 2018 को कार्यकाल के अंत तक यह 200 अरब पाकिस्तानी रुपये तक पहुंच गया.