पाकिस्तान में सिंधियों के खिलाफ नस्लीय भेदभाव किस कदर जड़ें जमा चुका है, इसका बानगी सामने आई है. एक रिपोर्ट में खुलासा किया है कि पाकिस्तान के मशहूर पॉडकास्टर और लेखक शहजाद घियास शेख को जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं. शहजाद का गुनाह सिर्फ इतना है कि उन्होंने कराची और पूरे पाकिस्तान में सिंधियों के खिलाफ होने वाले व्यवस्थागत भेदभाव और नफरत का पर्दाफाश करना शुरू किया था.
शहजाद घियास शेख पाकिस्तान के सबसे लोकप्रिय पॉडकास्टर्स में से एक हैं. वह इन दिनों कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, शहजाद कराची जैसे शहरों में सिंधियों के प्रति फैले नस्लीय पूर्वाग्रह पर बोल रहे थे. इसके बाद उन्हें डराने-धमकाने और चुप कराने का सिलसिला शुरू हो गया. सच्चाई सामने लाने के लिए उन्हें गंभीर सुरक्षा खतरे झेलने पड़ रहे हैं.
अमेरिका स्थित राजनीतिक विश्लेषक मोहम्मद अली माहिर ने पाकिस्तानी अखबार द फ्राइडे टाइम्स में लिखा, “बंटवारे के समय बोए गए जहरीले पूर्वाग्रह और दशकों तक पोषित की गई सोच अब कड़वे फल दे रही है. क्या हमें पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री की वह टिप्पणी याद नहीं है, जिसमें उन्होंने सिंधी संस्कृति का मज़ाक उड़ाते हुए कहा था- क्या ऊंट पालने वालों की भी कोई संस्कृति होती है? दुर्भाग्य से सिंधियों के खिलाफ यह खुला पूर्वाग्रह न सिर्फ स्वीकार किया गया बल्कि समाज में सामान्य बना दिया गया है.
उन्होंने एक टीवी प्रोग्राम का उदाहरण देते हुए लिखा कि मशहूर क्रिकेटर वसीम अकरम, वकार यूनिस और गायक फ़ख़्र-ए-आलम एक शो में लरकाना के गेंदबाज शाहनवाज दहानी का मज़ाक उड़ा रहे थे. कार्यक्रम में एक वक्ता ने सिंधियों को “किसी काम का नहीं” बताते हुए अपमानजनक टिप्पणी की, जिस पर स्टूडियो में ठहाके लगे.
रिपोर्ट के अनुसार, जमात-ए-इस्लामी के मौजूदा प्रमुख हाफिज नईम ने भी कराची के मेयर पद के लिए प्रचार के दौरान शहर को “सिंधियों से साफ करने” जैसी टिप्पणी की थी. वहीं पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी अपने कार्यकाल के दौरान कराची के दौरे में लोगों को यह कहकर उकसाने की कोशिश की कि शहर पर “बाहर से आए लोगों” यानी सिंधियों का शासन है.
पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने भी एक बार कहा था कि सिंधी शीर्ष पदों के योग्य नहीं हैं. यह बयान तब दिया गया था, जब उनसे पूछा गया कि उनके शासन में सिंधियों को उच्च पद क्यों नहीं मिले. द फ्राइडे टाइम्स में माहिर लिखते हैं, “पहले प्रधानमंत्री द्वारा सिंधियों को असंस्कृत ‘ऊंट पालक' कहने से लेकर आखिरी सैन्य शासक द्वारा उन्हें अयोग्य और अज्ञानी बताने तक, एक साफ पैटर्न दिखता है. यह सरकार प्रायोजित और प्रचारित पूर्वाग्रह देश की शुरुआत से लेकर आज तक लगातार चला आ रहा है.”














