रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सोमवार रात को पीएम मोदी का अपने सरकारी आवास ‘नोवो-ओगरियोवो' पर स्वागत किया. इस दौरान उन्होंने देश की प्रगति के लिए किए गए कार्यों के लिए मोदी की प्रशंसा की. समाचार एजेंसी ‘तास' की रिपोर्ट के मुताबिक, आवास पर अनौपचारिक बैठक के दौरान पुतिन ने मोदी से कहा, ‘‘मैं आपको दोबारा प्रधानमंत्री चुने जाने पर बधाई देना चाहता हूं. मुझे लगता है कि यह कोई इत्तेफाक नहीं है, बल्कि आपके कई वर्षों के काम का नतीजा है.'' भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा कि इस यात्रा से पता चलता है कि दोनों देशों के बीच अच्छे ताल्लुकात बने हुए हैं. सोमवार को रूस के लिए विमान में सवार होते हुए मोदी ने कहा कि वह पुतिन के साथ “द्विपक्षीय सहयोग के सभी पहलुओं” की समीक्षा करेंगे और “शांतिपूर्ण और स्थिर क्षेत्र के लिए सहायक भूमिका” निभाने का प्रयास करेंगे. एक तरफ जहां यूक्रेन पर युद्ध की वजह से रूस को पश्चिमी देशों की आलोचना झेलनी पड़ रही है. ऐसे में भारतीय पीएम की ये यात्रा उनके लिए और खास है.
भारत की नेबरहुड फर्स्ट नीति पर रूस के मामले में क्यों अलग
पीएम मोदी हमेशा पड़ोसी पहले की नीति पर चलते आए हैं, लेकिन नई सरकार बनने बाद पीएम मोदी ने पहली बार रूस की यात्रा पर हैं. ऐसे में इस यात्रा के मायने एकदम अलग है. पीएम मोदी उस परंपरा से भी अलग हो रहे हैं जिसके अनुसार आम तौर पर पीएम श्रीलंका, मालदीव या भूटान जैसे पड़ोसी दक्षिण एशियाई देशों की यात्रा सबसे पहले शुरू करते रहे हैं. पीएम मोदी मॉस्को की अपनी यात्रा के बाद ऑस्ट्रिया की यात्रा करेंगे, जिसने यूक्रेन के यूरोपीय संघ में शामिल होने के प्रयास का समर्थन किया है और उसे मानवीय सहायता देते हुए सैकड़ों मिलियन यूरो दिए हैं.
युद्ध पर रूस की आलोचना से क्यों बच रहा है भारत
युद्ध को लेकर रूस दुनियाभर के देशों के निशाने पर हैं, लेकिन भारत इस मामले में तटस्थ बना हुआ है. भारत सरकार ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की न तो निंदा की है और न ही उसे उचित ठहराया है,. हालांकि भारत कहता रहा है कि युद्ध किसी समस्या का हल नहीं है. भारत-रूस के दोस्ताना संबंधों का इतिहास काफी पुराना है, भारत कई दशकों से हथियारों के आयात के लिए रूस पर अधिक निर्भर रहा है. युद्ध की वजह से जब रूस पर प्रतिबंध लगने शुरू हुए तब भी भारत पश्चिमी देशों की चेतावनी को नजरअंदाज करते हुए रूस से भारी मात्रा में तेल खरीद रहा, जिससे युद्धग्रस्त रूस को बड़ी आर्थिक सहायता मिली है. ऐसे में भारत हर हाल में रूस की आलोचना से बचता आया है, जिसको लेकर पश्चिमी देश भी भारत पर दबाव बनाते आए हैं. मगर इसके बावजूद भारत अपने रुख पर बरकरार रहा.
रूस- चीन की नजदीकियां भारत के लिए परेशानी का सबब
भारत इस बात से चिंतित है कि चीन भी रूस से नजदीकियां बढ़ा रहा है. चीन और भारत के बीच की तल्खियां किसी से छिपी नहीं है. ऐसे में दोनों देश एक-दूसरे पर बढ़त बनाने के लिए हर कूटनीतिक रास्ता अपना रहे हैं. भारत इस बात से असहज है कि पुतिन चीन के कितने करीब आ गए हैं, जो उसका प्रमुख एशियाई प्रतिद्वंद्वी है. भारत को यूक्रेन में मास्को की सैन्य प्रतिबद्धताओं को देखते हुए रूसी हथियारों से महरूम होना पड़ा है, जिस वजह से भारत को अमेरिका, इजरायल, फ्रांस और इटली से अधिक खरीददारी करनी पड़ रही है.
फिलहाल भारत और रूस के संबंध वैसे नहीं है जितने की बाहरी तौर पर दिखते हैं. यही वजह है कि भारत फिर से रूस के साथ अपनी करीबी को बढ़ा रहा है. इस मुलाकात का जोर इस बात पर है कि भारत-रूस संबंधों को कैसे बेहतर बनाया जाए. पिछले दिनों से रणनीतिक वास्तविकताएं बदल रही हैं. भारत रूस को समझना और उसके साथ अपनी शर्तों पर जुड़ना चाहेगा. भारत रूस से ऊर्जा की निरंतर आपूर्ति बनाए रखने की कोशिश करेगा, क्योंकि वह अस्थिर मध्य पूर्व बाजार और वेनेजुएला जैसे अन्य स्रोतों पर निर्भर नहीं रहना चाहता. वहीं भारत हथियारों के सहयोग के मामले में भी रूस से आश्वासन चाहेगा.
पुतिन ने मानी पीएम मोदी की ये बात
रूसी राष्ट्रपति पुतिन और पीएम मोदी की इस मुलाकात के बाद रूसी सेना में काम कर रहे भारतीयों की स्वदेश वापसी का रास्ता साफ हो गया है. रूस के दौरे पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये मुद्दा राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के सामने उठाया था. पीएम मोदी के प्रस्ताव को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने मान लिया. रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने पीएम मोदी को अपने घर चाय पर बुलाया था. जहां पर दोनों के बीच हुई बातचीत के दौरान पीएम मोदी ने रूसी सेना में काम कर रहे, भारतीयों का मुद्दा उठाया. इस दौरान पुतिन ने पीएम मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री चुने जाने की बधाई भी दी.
आर्थिक मायनों में भी अहम पुतिन और मोदी की मुलाकात
साल 2014 में पीएम मोदी और पुतिन की पहली शिखर बैठक हुई थी और 2025 के लिए 30 बिलियन डॉलर के व्यापार और 50 बिलियन डॉलर के द्विपक्षीय निवेश का लक्ष्य निर्धारित किया गया था. उस वक्त व्यापार 10 बिलियन डॉलर से भी कम था. हालांकि पिछले कुछ सालों में इसमें काफी इजाफा हुआ है. वित्त वर्ष 2024 में यह करीब 66 बिलियन डॉलर पर जा पहुंचा. हालांकि इसमें भारत ने 62 बिलियन डॉलर का आयात किया है. इस मुलाकात की कोशिश यही रही है कि व्यापार को हर हाल में पहले से ज्यादा संतुलित किया जाए. साथ ही कृषि, फार्मास्युटिकल, इंजीनियरिंग सामान, रासायनिक उत्पाद के साथ ही ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में निर्यात बढ़ाने पर जोर होगा.