- गाजा में जारी संघर्ष के कारण मासूम बच्चे भूख और असुरक्षा के बीच जिंदा रहने की जद्दोजहद कर रहे हैं.
- 1947 में UN ने फिलिस्तीन को यहूदी और अरब राज्यों में बांटा था, जिसे अरब देशों ने स्वीकार नहीं किया था.
- फिलिस्तीन की पूर्ण सदस्यता का प्रस्ताव अमेरिका के वीटो के कारण संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अटका हुआ है.
गाजा आज एक जिंदा नर्क में तब्दील हो चुका है. कंकाल से दिखते मासूम बच्चों को हाथ में लिए मांओं की तस्वीर आज के गाजा की सच्चाई बन गई है. ये तो वो मासूम बच्चे हैं जो अब भी कराहकर ही सही, सांस तो ले रहे हैं. एक तरफ गाजा में भूख और पनाह से जूझती जनता जिंदा रहने की लड़ाई लड़ रही है तो दूसरी तरफ इजरायल के कई परिवारों को उन लोगों का इंतजार है जो अभी भी हमास उग्रवादियों के कब्जे में है.
1947 में फिलिस्तीन की जमीन के यहूदी और अरब राज्यों में विभाजन के बाद से यह जमीन हिंसा के जख्म को सहती आती है. विभाजन के बाद से ही संयुक्त राष्ट्र फिलिस्तीनियों के भाग्य से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है. इस सप्ताह संगठन की बैठक में ‘दो-राज्य समाधान' को पुनर्जीवित करने की उम्मीद है. इसमें इजरायल के मौजूदा देश के साथ-साथ एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी देश की स्थापना की जाएगी - जिससे दोनों देशों के लोगों को अपना-अपना क्षेत्र मिलेगा.
बंटवारा
बात नवंबर 1947 की है जब ब्रिटिश शासन के अंदर आने वाले फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने यहूदी और अरब राज्यों में बांट दिया. यरूशलेम के लिए एक विशेष अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र बनाते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रस्ताव 181 को अपनाया. यहूदी नेताओं ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, लेकिन अरब राज्यों और फिलिस्तीन की आम जनता ने इसका विरोध किया.
इसके बाद मई 1948 में इजरायल ने स्वतंत्रता की घोषणा की, जिससे अरब-इजरायल युद्ध शुरू हो गया. अगले साल ही इजरायल ने यह जंग जीत ली. लगभग 760,000 फिलिस्तीनी अपने घर छोड़कर भाग गए या उन्हें निष्कासित कर दिया गया. इस घटना को "नकबा" के रूप में जाना जाता है, यह "तबाही" के लिए एक अरबी शब्द है. इस घटना को संयुक्त राष्ट्र ने मई 2023 में पहली बार आधिकारिक तौर पर माना था.
फिलिस्तीनियों के आत्मनिर्णय का अधिकार
1967 में फिर छह-दिनों का युद्ध हुआ. इसके बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने संकल्प (रिजोल्यूशन) 242 को अपनाया. इसमें इजरायल से कहा गया कि वो वेस्ट बैंक, गाजा और पूर्वी यरुशलम सहित लड़ाई के दौरान कब्जे में लिए गए क्षेत्रों को वापस कर दे. लेकिन इस प्रस्ताव के अंग्रेजी और फ्रेंच वर्जन के बीच भाषाई अस्पष्टता थी और उसने मामले को जटिल बना दिया, जिससे आवश्यक वापसी की गुंजाइश अस्पष्ट हो गई.
नवंबर 1974 में, फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) के प्रमुख यासर अराफात ने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपना पहला भाषण देते हुए कहा कि उनके पास "ऑलिव ब्रांच (शांति का प्रतीक) और स्वतंत्रता सेनानी की बंदूक" दोनों हैं.
संयुक्त राष्ट्र के बिना ओस्लो वार्ता
फिलिस्तीन और इजरायल के बीच सबसे मजबूत शांति पहलों में से एक- ओस्लो वार्ता संयुक्त राष्ट्र के बिना आई थी. 1993 में, इजराइल और पीएलओ - जिसने 1988 में एकतरफा रूप से फिलिस्तीन को स्वतंत्र देश घोषित किया था - ने नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में कई महीनों तक गुप्त वार्ता की.
दोनों पक्षों ने फिलिस्तीनी स्वायत्तता पर "सिद्धांतों की घोषणा" पर हस्ताक्षर किए और 1994 में, अराफात लंबे निर्वासन के बाद फिलिस्तीनी क्षेत्रों में लौट आए और गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक के लिए शासी निकाय फिलिस्तीनी प्राधिकरण का गठन किया.
अमेरिका की भूमिका
फिलिस्तीनियों के साथ क्या किया जाए, इस पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के निर्णय हमेशा वीटो-प्राप्त अमेरिका के पोजिशन पर निर्भर रहे हैं. 1972 के बाद से, वाशिंगटन ने अपने करीबी सहयोगी इजराइल की रक्षा के लिए 30 से अधिक बार अपने वीटो का इस्तेमाल किया है. लेकिन कभी-कभी, यह प्रमुख संकल्पों को आगे बढ़ने की अनुमति देता है.
मार्च 2002 में, वाशिंगटन की पहल पर सुरक्षा परिषद ने संकल्प 1397 को अपनाया, जो सुरक्षित और मान्यता प्राप्त सीमाओं के साथ इजरायल के साथ मौजूदा फिलिस्तीनी राज्य का उल्लेख करने वाला पहला संकल्प था. दिसंबर 2016 में, 1979 के बाद पहली बार, परिषद ने इजरायल से फिलिस्तीनी क्षेत्रों में बस्तियां बनाना बंद करने का आह्वान किया. अमेरिका ने इसपर वोट नहीं किया था. और मार्च 2024 में (एक बार फिर अमेरिका ने वोट नहीं किया था) अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के दबाव में सुरक्षा परिषद ने गाजा में तत्काल युद्धविराम का आह्वान किया था.
क्या फिलिस्तीन को आजाद देश की मान्यता मिलेगी?
2011 में, फिलिस्तीनी प्राधिकरण के अध्यक्ष महमूद अब्बास ने संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन राज्य की सदस्यता का अनुरोध करने की प्रक्रिया शुरू की. लेकिन इसके लिए पहले सुरक्षा परिषद से सिफारिश की आवश्यकता थी, जिसके बाद महासभा से वोटिंग होती.
अप्रैल 2024 में, फिलिस्तीनियों ने पूर्ण सदस्य देश बनने के लिए अपने अनुरोध को फिर से दोहराया, लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका ने इस पर वीटो कर दिया. यदि फिलिस्तीन को सुरक्षा परिषद की मंजूरी की आवश्यकता नहीं होती तो इसे महासभा में आवश्यक दो-तिहाई बहुमत द्वारा मंजूरी आसानी से मिल जाती. न्यूज एजेंसी एएफपी के डेटाबेस के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से कम से कम 142 देश एकतरफा फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देते हैं.
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