सिख धर्म अपने अनुयायियों को पांच 'ककार' - केश, कड़ा, कंघा, कच्छा और कृपाण- का पालन करने को कहता है, लेकिन खैबर पख्तूनख्वा में सिखों का कहना है कि उन्हें सार्वजनिक रूप से कृपाण (खंजर) ले जाने की अनुमति नहीं है यानी सार्वजनिक जगहों पर कृपाण लेकर नहीं जा सकते. द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, 'कृपाण' को लेकर कानून नहीं होने की वजह से खैबर पख्तूनख्वा के सिख परेशान हैं. वहीं पाकिस्तान का संविधान धर्म की स्वतंत्रता की गारंटी देता है.
आमतौर पर वयस्क सिख 4 से 5 इंच का कृपाण रखते हैं, जिसे एक म्यान में रखा जाता है, इसे कपड़ों के नीचे या ऊपर पहना जाता है. कृपाण अन्याय के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक है और सिख धर्म का एक अभिन्न अंग है.
एक्सप्रेस ट्रिब्यून के मुताबिक, खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के सिख समुदाय के लोग सरकारी दफ्तरों में जाने, अदालत या पुलिस स्टेशन में प्रवेश करने और हवाई यात्रा के दौरान कृपाण ले जाने की अनुमति देने के लिए कानून बनाने पर जोर दे रहे हैं.
प्रांतीय विधानसभा के अल्पसंख्यक सदस्य रंजीत सिंह इस तरह के कानून को लेकर सबसे ज्यादा मुखर हैं क्योंकि उन्हें प्रांतीय विधानसभान में स्टील की तलवार ले जाने की अनुमति नहीं दी गई थी.
रंजीत सिंह ने कहा, "जब मैं विधानसभा में प्रवेश करता हूं, तो मुझे अक्सर अपनी तलवार बाहर छोड़कर आने के लिए कहा जाता है, जिसे चलते मुझे तलवार को कार या ब्रिफकेस में रखना पड़ता है." उन्होंने कहा कि तलवार नहीं ले जाने के लिए कहा जाना उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला है.
कानून की मांग करने वाले एक अकेले शख्स नहीं हैं. पेशावर के एक सिख सामाजिक कार्यकर्ता और युवा सभा खैबर पख्तूनख्वा में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री बाबा गुरपाल सिंह ने 'कृपाण' में रखने का अधिकार नहीं होने पर अपना दर्द साझा किया. उन्होंने कहा, "गुरु ने हमारे लिए पांच चीजें अनिवार्य की हैं और इसमें से एक को रखने की इजाजत नहीं देना दुखद है."
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