पाकिस्‍तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर की नई चाल, अमेरिका से कहा- अरब सागर में पोर्ट बनाओ 

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मुनीर और ट्रंप के बीच वह रिश्ता बन गया है जिसे अमेरिकी और पाकिस्तानी राजनयिक 'भाईचारा' कह रहे हैं.

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  • पाक ने अमेरिका को अरब सागर के तट पर पासनी में एक नया बंदरगाह बनाने और संचालित करने का प्रस्ताव दिया.
  • बताया जा रहा है कि बंदरगाह चीन के ग्वादर बंदरगाह के करीब होगा और ईरान के चाबहार बंदरगाह से भी पास होगा.
  • प्रस्तावित बंदरगाह से अमेरिका को संवेदनशील क्षेत्रों में व्यापार और रणनीतिक प्रभाव बढ़ाने में मदद मिलेगी.
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वॉशिंगटन:

पाकिस्तान ने अमेरिका को अरब सागर के तट पर एक नया बंदरगाह बनाने और उसे संचालित करने का प्रस्ताव दिया है. यह चौंकाने वाला प्रस्ताव पाकिस्तान सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर के सलाहकारों की तरफ से अमेरिका के अधिकारियों को दिया गया है. फाइनेंशियल टाइम्स (Financial Times) की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस योजना में अमेरिका के इनवेस्‍टर्स क तरफ से पाकिस्‍तान के पासनी  शहर में एक टर्मिनल का निर्माण किया जाएगा. अरब सागर में बनने वाले इस पोर्ट की मदद से जहां एक तरफ अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप को लुभाने की कोशिश हो रही है तो वहीं पाकिस्‍तान के इस कदम से चीनी राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग का पारा सातवें आसमान पर पहुंच जाएगा. 

अमेरिका ने देखा प्‍लान 

इस बंदरगाह की मदद से वाशिंगटन को दुनिया के सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में से एक में पैर जमाने में मदद मिल सकती है. फाइनेंशियल टाइम्स ने दावा किया है कि उसने पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर के सलाहकारों की तरफ से पेश की गई इस योजना पर एक नजर दौड़ाई है. पासनी वह जगह है जिसे मछली पकड़ने वाले शहर के तौर पर जाना जाता है. अमेरिका इसे पाकिस्तान के महत्वपूर्ण खनिजों तक पहुंच के लिए एक टर्मिनल के तौर पर विकसित करने वाला है. अभी तक हालांकि इस पर किसी भी तरह की कोई आधिकारिक टिप्‍पणी नहीं की गई है. 

चीन और भारत पर क्‍या असर 

दूसरी ओर पासनी, ईरान से करीब 160 किमी और पाकिस्तानी शहर ग्वादर से कुछ ही किमी किमी दूर है. ग्‍वादर में चीन की मदद से बना एक बंदरगाह है. पाकिस्‍तान का यह बंदरगाह बलूचिस्तान के ग्वादर जिले के पासनी कस्बे में स्थित होगा. पासनी जहां एक तरफ चीन की तरफ से निर्मित ग्‍वादर के करीब है तो वहीं ईरान में भारत की तरफ से विकसित किए जा रहे चाबहार बंदरगाह के भी करीब है. भारत की नजरें भी इस बड़े घटनाक्रम पर होंगी. चाबहार से पासनी की दूरी सिर्फ 300 किलोमीटर है. भारत यहीं पर शाहिद बेस्‍ती टर्मिनल को निर्माण करा रहा है. 

विशेषज्ञों के अनुसार पाकिस्तान ने यह कहकर अमेरिका को खुश करने की कोशिश की है कि पासनी की ईरान और सेंट्रल एशिया से निकटता अमेरिका के व्यापार के विकल्पों को बढ़ाएगी.  इससे अरब सागर और सेंट्रल एशिया में अमेरिकी प्रभाव भी बढ़ेगा. दिलचस्प बात यह है कि पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह भी है, जिसकी फंडिंग चीन करता है और जिसका मैनेजमेंट भी चीन ही करता है. पासनी, ग्वादर से सिर्फ 100 किलोमीटर दूर स्थित है, जहां चीन बंदरगाह सुविधा का संचालन करता है. 

फायदा उठाने की फितरत  

फाइनेंशियल टाइम्‍स के अनुसार यह पहल आधिकारिक नीति नहीं है, बल्कि यह बताती है कि कैसे पाकिस्तान के अधिकारी दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक उथल-पुथल का अपने फायदे के लिए फायदा उठाने के तरीके तलाश रहे हैं. मुनीर के दो असैन्य सलाहकारों ने नाम न छापने की शर्त पर अखबार को बताया कि इस पहल पर कुछ अमेरिकी अधिकारियों के साथ चर्चा हुई है. पिछले महीने के अंत में व्हाइट हाउस में ट्रंप के साथ बैठक से पहले मुनीर के साथ भी इसे साझा किया गया था. हालांकि, ट्रंप प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अमेरिकी राष्‍ट्रपति और उनके सलाहकारों ने इस तरह के प्रस्ताव पर चर्चा नहीं की है. 

होगा कितना मुनाफा 

इस सीक्रेट प्‍लान के पसनी बंदरगाह को पाकिस्तान के अंदरूनी इलाकों से खनिजों, विशेष तौर पर तांबे और एंटीमनी, जो बैटरी, अग्निरोधी और मिसाइलों में एक महत्वपूर्ण घटक हैं, को ट्रांसपोर्ट करने के लिए एक नए रेलमार्ग से जोड़ा जाएगा. एक ब्लूप्रिंट में अनुमान लगाया गया था कि इस बंदरगाह की लागत 1.2 अरब अमेरिकी डॉलर तक होगी और प्रपोज्‍ड फंडिंग मॉडल पाकिस्तानी सरकार और अमेरिकी सरकार की तरफ से मिलाजुला रूप होगा. 

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ऐसे समय में जब पाकिस्‍तान की अर्थव्‍यवस्‍था ढहने के कगार पर, अमेरिकी निवेशकों का बंदरगाह के बहाने मुल्‍क में दाखिल होना, उसके लिए कुछ हद तक बेहतर हो सकता है. देश से जब विदेशी कंपनियां बाहर जा रही हैं तो उस समय पर यह खबर आना एक सकारात्‍मक माहौल का निर्माण कर सकता है. फिलहाल यह देखने के लिए समय का इंतजार करना होगा कि इसका अर्थव्‍यवस्‍था पर कितना असर पड़ेगा. 

तालिबान के कंधे तक की सीढ़ी 

अखबार की मानें तो इसमें 'डायरेक्‍ट बेस' शामिल नहीं है ताकि यह अमेरिकी मिलिट्री अड्डे के तौर पर काम न करे. लेकिन इसे अफगानिस्‍तान में अमेरिका के नेतृत्व वाले युद्ध के दौरान तालिबान को पाकिस्तान के समर्थन से बिगड़े संबंधों को फिर से बनाने और नए सिरे से स्थापित करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है. एक वरिष्ठ पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी ने अखबार को बताया कि मुनीर के पास 'आधिकारिक तौर पर कोई सलाहकार नहीं है'.

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साथ ही उन्‍होंने आगे कहा कि बंदरगाह का विचार अमेरिकी व्यवसायों के साथ ' प्राइवेट डिस्‍कशंस में सामने आया' और इसे 'आधिकारिक माध्यमों से पेश नहीं किया गया है. साथ ही स्‍ही विचार-विमर्श न होने से यह एक व्यावसायिक विचार बना हुआ है. कहा जाता है कि यह योजना ट्रंप प्रशासन के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए पाकिस्तानी अधिकारियों की तरफ से सार्वजनिक और निजी तौर पर पेश किए गए कई विचारों में से एक है. 

मुनीर और ट्रंप के बीच बेहतर रिश्‍ते 

एफटी की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मुनीर और ट्रंप के बीच वह रिश्ता बन गया है जिसे अमेरिकी और पाकिस्तानी राजनयिक 'भाईचारा' कह रहे हैं. अमेरिकी राष्‍ट्रपति ने मई में हुए युद्धविराम का श्रेय लिया था. हालांकि भारत ने इससे हमेशा इनकार कर दिया है. भारत ने मई में ऑपरेशन सिंदूर के बाद संघर्ष विराम में ट्रंप की भागीदारी के दावों को लगातार खारिज किया है, लेकिन पाकिस्तानी अधिकारियों ने सार्वजनिक तौर पर ट्रंप का आभार व्‍यक्त किया है. सिर्फ इतना ही नहीं उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित भी किया है. अखबार ने ट्रंप की टीम के साथ गुप्त बातचीत में शामिल एक पाकिस्तानी सलाहकार के हवाले से कहा, 'युद्ध के बाद (अमेरिका-पाकिस्तान) संबंधों की पूरी कहानी ही बदल गई.' 

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