- पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच सीमा विवाद सुलझाने के लिए तुर्किये में तीन दिन से बातचीत चल रही है
- बातचीत में अधिकांश मुद्दों पर सहमति बन गई पर आतंकवादी समूहों के खिलाफ ठोस कार्रवाई मुख्य विवाद बना हुआ है
- अफगान तालिबान प्रतिनिधिमंडल ने तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान को समर्थन न देने की लिखित गारंटी देने से इनकार किया
पाकिस्तान और पड़ोसी अफगानिस्तान के बीच सीमा पार सैन्य और अन्य मुद्दों पर अपने विवाद को सुलझाने के लिए तुर्किये में बातचीत अब भी जारी है, लेकिन वे अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं. यह बातचीत शनिवार को शुरू हुई और सोमवार तक जारी रही, लेकिन कोई अंतिम समझौता नहीं हो सका है. अधिकारियों के हवाले से ‘डॉन' अखबार ने खबर दी कि अंतिम समझौता अभी नहीं हुआ है.
क्या है बंद कमरे की कहानी
बंद कमरे में हुई बातचीत से परिचित सूत्रों ने बताया कि हालांकि दोनों पक्षों के बीच अधिकांश बिंदुओं पर आपसी सहमति बन गई है, लेकिन अफगान क्षेत्र से सक्रिय आतंकवादी समूहों के खिलाफ ठोस कार्रवाई मुख्य मुद्दा बना हुआ है. अखबार ने एक सूत्र के हवाले से कहा, ‘हमें उम्मीद थी कि हम जल्द ही अफगानिस्तान के साथ एक पारस्परिक दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर सकेंगे जिसके बाद एक संयुक्त बयान जारी किया जाएगा लेकिन यह अब भी हमारी पहुंच से बाहर है.'
सोमवार की सुबह बातचीत काफी सकारात्मक रही, इसमें भाग लेने वाले अधिकारियों ने दोनों प्रतिनिधिमंडलों की ओर से ‘उत्साहजनक प्रगति' और ‘गंभीर भागीदारी' का जिक्र किया. जैसे-जैसे वक्त आगे बढ़ा और बातचीत शाम तक जारी रही तो उम्मीद की रोशनी फीकी पड़ती गई. एक सूत्र ने कहा, ‘यह एक मुश्किल दौर है.'
अखबार के अनुसार, रात होते-होते ऐसा लगने लगा कि बातचीत में एक बार फिर से रुकावट पैदा हो गई है. सूत्रों के अनुसार, अफगान तालिबान प्रतिनिधिमंडल ने लिखित रूप में कुछ भी देने से इनकार कर दिया, विशेष रूप से प्रतिबंधित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को समर्थन न देने के लिए गारंटी प्रदान करने के मुद्दे पर.
तीन दिन की बातचीत का हासिल क्या?
प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य ने कहा, ‘अफगान पक्ष ने स्पष्ट कर दिया है कि तनाव से किसी को कोई फायदा नहीं है. हमें उम्मीद है कि इस बातचीत का सकारात्मक परिणाम निकलेगा ऐसी जानकारी है कि तुर्किये और कतर के मध्यस्थों ने भी ऐसे ही विचार साझा किए और संपर्क बनाए रखने तथा प्रक्रिया को बाधित होने से रोकने के महत्व पर जोर दिया.
लंबे समय से जारी गतिरोध के बावजूद राजनयिक सूत्रों ने सोमवार के सत्र को ‘महत्वपूर्ण' बताया. एक मध्यस्थ ने कहा, ‘भले ही बातचीत में कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं हुई लेकिन दोनों पक्षों का लगातार तीन दिन तक बातचीत में शामिल रहना अपने आप में महत्वपूर्ण है. यह दिखाता है कि कोई भी पक्ष वार्ता प्रक्रिया को टूटने नहीं देना चाहता.'
... तो पाक-तालिबान में छिड़ेगा युद्ध!
अखबार के अनुसार, सोमवार देर शाम तक इस्तांबुल में वार्ताकार यह विचार कर रहे थे कि क्या चर्चाओं को चौथे दिन तक बढ़ाया जाए. इससे पहले, इस महीने की शुरुआत में हुई झड़पों में कई सैनिकों, आम नागरिकों और आतंकवादियों की मौत हो गई थी, जिससे युद्ध जैसी स्थिति बन गई थी. हालांकि, कतर और तुर्किये की मध्यस्थता में 19 अक्टूबर को हुई बातचीत के बाद अस्थायी रूप से शांति बहाल हो गई थी. पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने शनिवार को चेतावनी दी थी कि अगर यह बातचीत विफल रही, तो पाकिस्तान को ‘अफगान तालिबान के साथ पूर्ण युद्ध' का सामना करना पड़ सकता है.














