अब स्मार्टफोन से 25 मिनट में Zika Virus का होगा टेस्ट, वैज्ञानिकों ने बनाई अनोखी डिवाइस, ऐसे करेगा काम

फिलहाल ज़िका वायरस के संक्रमण का परीक्षण लैब में किए गए पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन टेस्ट के माध्यम से किया जाता है. ये प्रक्रिया वायरस की आनुवंशिक सामग्री को बढ़ा सकता है, जिससे वैज्ञानिकों को इसका पता लगाने में मदद मिलती है.

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वैज्ञानिक उपकरणों को और भी छोटा बनाने पर काम कर रहे हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
वाशिंगटन:

नए अध्ययन के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने एक ऐसे डिवाइस को डेवलप किया है, जिसे स्मार्ट फोन से जोड़ कर केवल एक बूंद खून की मदद से कुछ ही मिनटों में जीका वायरस का टेस्ट किया जा सकता है. इलिनोइस विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने COVID-19 महामारी का पता लगाने के तरीकों की निगरानी की है, जो तेजी, सरल, सटीक और संवेदनशील हैं. ये वायरस का पता लगाने और संक्रामक रोगों के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए अहम हैं. दरअसल, लैब-बैस्ड टेस्ट के लिए अक्सर प्रशिक्षित कर्मियों की जरूरत होती है और इसकी प्रक्रियाएं भी मुश्किल होती है. 

रोग के कोई स्पष्ट लक्षण नहीं होते

जीका वायरस मुख्य रूप से एडीज एजिप्टी मच्छरों से फैलता है. इस रोग के कोई स्पष्ट लक्षण नहीं होते. वयस्कों में कभी-कभी हल्के लक्षण दिखते हैं. हालांकि, ये नवजात शिशुओं के लिए बहुत खतरनाक है. अगर उनकी मां गर्भावस्था के दौरान जीका वायरस से संक्रमित होती हैं, तो बाद में बच्चों में डेवलपमेंटल डिसऑर्डर आ जाते हैं. मौजूदा समय में, वायरस 87 से अधिक देशों में फैल चुका है, जिससे सालाना हजारों लोगों संक्रमित होते हैं. ऐसे में बेहतर टेस्ट और नियंत्रण उपायों की जरूरत है.

बार-बार तापमान परिवर्तन की जरूरत

फिलहाल ज़िका वायरस के संक्रमण का परीक्षण लैब में किए गए पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन टेस्ट के माध्यम से किया जाता है. ये प्रक्रिया वायरस की आनुवंशिक सामग्री को बढ़ा सकता है, जिससे वैज्ञानिकों को इसका पता लगाने में मदद मिलती है. नए अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने पॉइंट-ऑफ-केयर क्लीनिक के लिए उपयुक्त दृष्टिकोण का उपयोग करके रक्त के नमूनों में वायरस का पता लगाने के लिए लूप-मेडियेटेड इज़ोटेर्मल एम्प्लीफिकेशन (एलएएमपी) का उपयोग किया. जबकि पीसीआर को आनुवंशिक सामग्री को बढ़ाने के लिए 20-40 बार-बार तापमान परिवर्तन की जरूरत होती है.

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एलएएमपी को केवल एक तापमान की आवश्यकता होती है - 65 डिग्री सेल्सियस - जिससे इसे नियंत्रित करना आसान हो जाता है. इसके अलावा, पीसीआर टेस्ट दूषित पदार्थों, खासकर ब्लड सैंपल में मौजूद अन्य घटकों के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं. नतीजतन, सैंपल को टेस्ट करने से पहले शुद्ध किया जाता है. दूसरी ओर, LAMP को ऐसे किसी प्रकिया की आवश्यकता नहीं होती है.

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एक कार्ट्रिज, जिसमें वायरस का पता लगाने के लिए जरूरी रिएक्टर होते हैं, परीक्षण करने के लिए उपकरण में डाला जाता है, जबकि उपकरण को स्मार्टफोन पर क्लिप किया जाता है. जब रोगी खून की एक बूंद उसमें डालता है, तो केमिकल का एक सेट पांच मिनट के भीतर वायरस और रक्त कोशिकाओं को तोड़ देता है.

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कार्ट्रिज के नीचे एक हीटर इसे 65 डिग्री सेल्सियस तक गर्म करता है. रसायनों का एक दूसरा सेट तब वायरल आनुवंशिक सामग्री को बढ़ाता है, और यदि रक्त के नमूने में जीका वायरस होता है, तो कार्ट्रिज के अंदर का तरल हरे रंग का हो जाता है। पूरी प्रक्रिया में 25 मिनट लगते हैं. कनिंघम ने कहा, " प्रक्रिया का दूसरा अच्छा पहलू यह है कि हम इसे स्मार्टफोन के साथ रीडआउट कर रहे हैं."

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उन्होंने कहा, " हमने एक क्लिप-ऑन डिवाइस डिज़ाइन किया है ताकि एम्पलीफिकेशन के दौरान स्मार्टफोन का रियर कैमरा कार्ट्रिज को देख सके. जब कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया होती है, तो कार्ट्रिज हरे रंग हो जाता है." गौरतलब है कि शोधकर्ता अब एक साथ मच्छर जनित अन्य वायरस का पता लगाने के लिए समान डिवाइस विकसित कर रहे हैं और उपकरणों को और भी छोटा बनाने पर काम कर रहे हैं. 

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