यमन में भारतीय नर्स की सजा माफी की मशक्कत... क्या रंग लाएगी मुस्लिम धर्मगुरु, सरकार और संगठन की मेहनत

केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ को बताया कि इस मामले में ‘‘प्रयास जारी हैं.’’ उन्होंने कहा कि सरकार चाहती है कि प्रिया सुरक्षित वापस आ जाएं. पीठ ने कहा, ‘‘ सरकार हर संभव मदद कर रही है.’’याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि पहले उन्हें (नर्स को) क्षमादान मिले, उसके बाद ‘‘ब्लड मनी’’ का मुद्दा आएगा.

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  • केरल की नर्स निमिषा प्रिया को यमन में साल 2017 में हत्या के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई थी.
  • फांसी की सजा पर अमल 16 जुलाई 2024 को होना था, लेकिन कूटनीतिक हस्तक्षेपों से इसे टाल दिया गया.
  • मुस्लिम धर्मगुरु ने कुछ वक्त के लिए फांसी टलवाने में खास भूमिका निभाई, हालांकि अभी सजा माफ नहीं हुई है.
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नई दिल्ली/तिरुवनंतपुरम:

एक फैमिली की पुकार, एक मुल्क की कूटनीति और इंसानियत की आखिरी उम्मीद...सब मिलकर इस कोशिश में है कि यमन की जेल में बंद भारतीय नर्स निमिषा प्रिया की फांसी की सजा को किसी तरह माफ कराया जा सकें, लेकिन निमिषा की फांसी की सजा माफ कराने की राह में कई रोड़े आ रहे हैं. यही वजह है कि अदालतों से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों तक, सरकार से लेकर धर्मगुरुओं तक, हर कोई केरल की नर्स को बचाने में जी जान से लगा है. ब्लड मनी का सवाल हो या क्षमादान की अपील — यह मामला अब सिर्फ एक सख्त सजा की माफी का नहीं, बल्कि कूटनीति, कानून और दया की भी परीक्षा बन चुका है. सजा पर अमल 16 जुलाई 2024 को होना था, लेकिन सरकारी और कूटनीतिक हस्तक्षेपों के चलते फिलहाल इसे कुछ वक्त के लिए टाल दिया गया है.

निमिषा को क्यों मिली मौत की सजा

केरल के पलक्कड़ जिले की रहने वाली मिषा प्रिया, साल 2008 में नर्स की नौकरी के लिए यमन गई थीं. जहां उसने क्लिनिक खोला. यमन के कानून के तहत, विदेशी को स्थानीय साझेदार रखना जरूरी है. इसलिए निमिषा ने एक यमन के नागरिक को अपना साझेदार बनाया. आरोपों के मुताबिक मेहदी ने उसके साथ न सिर्फ धोखाधड़ी की, पैसे हड़पे और यहां तक कि उस पर शादी का झूठा दावा भी किया. परिवार की याचिका बताती है कि मेहदी ने निमिषा को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया. 2017 में, निमिषा ने मेहदी को बेहोश कर पासपोर्ट वापस लेने की योजना बनाई पर ड्रग की ओवरडोज से मेहदी की मौत हो गई. घबराहट में निमिषा और उसकी साथी नर्स ने शव के टुकड़े कर उसे पानी की टंकी में फेंक दिया.

फिलहाल कैसे टली निमिषा की फांसी

यह दूतावास या अदालतें नहीं थीं जिन्होंने इस मामले की दिशा बदली, बल्कि यह आस्था, दृढ़ता और केरल और यमन के बीच एक अप्रत्याशित हॉटलाइन थी. केरल के मरकज के माध्यम से एक प्रमुख भारतीय मुस्लिम धर्मगुरु, कंथापुरम एपी अबूबकर मुसलियार के प्रयासों की वजह से फिलहाल फांसी को फिलहाल टाला गया है, जिनके हस्तक्षेप ने यमन में राजनीतिक और धार्मिक नेताओं के साथ सीधा संपर्क स्थापित करने में मदद की. इससे रात भर बातचीत का सत्र चला जिसने अंततः पीड़ित परिवार के एक सदस्य को बातचीत की मेज पर लाया. पीड़ित परिवार का जिक्र करते हुए चंद्रन ने कहा, 'वे समूहों के दबाव में थे, लेकिन केरल के नेता यमनी धर्मगुरुओं के संपर्क में थे, इसलिए उन्हें मना लिया गया.' आगे उन्‍होंने कहा, 'शुरुआत में, वे बिल्कुल बात नहीं करना चाहते थे. लेकिन मनाने पर, उन्होंने बात सुनी. इसने हमें बस इतनी उम्मीद दी.' 

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कौन हैं मुस्लिम धर्मगुरु, जो निमिषा को बचाने में लगे

भारतीय नर्स निमिषा प्रिया की यमन में होने वाली फांसी को टालने में अहम भूमिका निभाने वाले शख्स शेख अबूबकर अहमद आधिकारिक रूप से कंथापुरम ए. पी. अबूबकर मुसलियार के नाम से जाना जाता है. वे भारत के दसवें "ग्रैंड मुफ्ती" हैं — यानी देश के सर्वोच्च सुन्नी धार्मिक नेता. उन्होंने इस मामले में इस्लामी कानून के तहत 'दिया' (ब्लड मनी) के सिद्धांत का उपयोग करते हुए यमन की शरिया अदालत में मध्यस्थता की, जिससे फांसी की सजा को टालने में सफलता मिली. यह एक दुर्लभ उदाहरण है जब किसी धार्मिक नेता ने विदेश में कानूनी और कूटनीतिक हस्तक्षेप कर एक भारतीय नागरिक की जान बचाने में मददगार साबित हो रहा है.

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फरवरी 2019 में उन्हें ऑल इंडिया तंजीम उलेमा-ए-इस्लाम द्वारा भारत का ग्रैंड मुफ्ती चुना गया था. उनका जन्म भी केरल के कंथापुरम, कोझिकोड में हुआ था. वे दशकों से इस्लामी शिक्षा, सामाजिक सेवा और सार्वजनिक संवाद के क्षेत्र में सक्रिय हैं. वे ऑल इंडिया सुन्नी जमीयतुल उलेमा और समस्त केरल जेम-इय्यतुल उलेमा जैसे प्रभावशाली संगठनों के महासचिव भी हैं. उनका ग्रैंड मुफ्ती बनना एक ऐतिहासिक क्षण था, क्योंकि वे इस पद पर पहुंचने वाले कुछ दक्षिण भारतीय विद्वानों में से एक हैं. निमिषा प्रिया के मामले में उनकी भूमिका ने यह साबित कर दिया है कि धार्मिक नेतृत्व, अगर सही दिशा में इस्तेमाल हो, तो वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी जीवन बचाने का माध्यम बन सकता है. हालांकि अभी भी निमिषा की फांसी की सजा को माफ कराना कोई आसान काम नहीं है.

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सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?

भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने इस बारे में सुप्रीम कोर्ट में बताया कि सरकार पूरी कोशिश कर रही है कि निमिषा सुरक्षित भारत लौट आएं. याचिकाकर्ता की तरफ से कोर्ट में पेश हुए वकील ने अनुरोध किया कि पीड़ित परिवार से बातचीत के लिए उनके प्रतिनिधियों को यमन जाने की अनुमति दी जाए. वकील ने कहा कि “पहले क्षमादान (माफी) मिले, फिर ब्लड मनी (दियात) की बात हो सकेगी.” कोर्ट ने 14 अगस्त तक सुनवाई टाल दी और सरकार से बातचीत करने को कहा.

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सरकार की क्या कोशिश, सुप्रीम कोर्ट में बताया

सरकार ने आज सूचित किया गया कि यमन में हत्या के जुर्म में मौत की सजा का सामना कर रही भारतीय नर्स निमिषा प्रिया की फांसी पर रोक लग गई है. केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ को बताया कि इस मामले में ‘‘प्रयास जारी हैं.'' उन्होंने कहा कि सरकार चाहती है कि प्रिया सुरक्षित वापस आ जाएं. पीठ ने कहा, ‘‘ सरकार हर संभव मदद कर रही है.'' याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि पहले उन्हें (नर्स को) क्षमादान मिले, उसके बाद ‘‘ब्लड मनी'' का मुद्दा आएगा.

याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि फांसी स्थगित कर दी गई है. पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 14 अगस्त की तिथि निर्धारित की है. शीर्ष अदालत यमन में फांसी की सजा का सामना कर रही प्रिया (38) को बचाने के लिए राजनयिक माध्यमों का इस्तेमाल करने के वास्ते केंद्र को निर्देश देने संबंधी एक याचिका पर सुनवाई कर रही है. प्रिया को पहले फांसी 16 जुलाई को दी जानी थी.  केरल के पलक्कड़ जिले की नर्स प्रिया को 2017 में अपने यमनी व्यापारिक साझेदार की हत्या का दोषी ठहराया गया था। उसे 2020 में मौत की सजा सुनाई गई थी और उसकी अंतिम अपील 2023 में खारिज कर दी गई थी. वह वर्तमान में यमन की राजधानी सना की एक जेल में बंद है.

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