भारत, मॉरीशस ने कर संधि में संशोधन को लेकर समझौते पर किए हस्ताक्षर

नांगिया एंडरसन इंडिया के चेयरमैन राकेश नांगिया ने कहा कि संशोधन, संधि के दुरुपयोग के खिलाफ भारत का कदम है. यह वैश्विक प्रयासों के अनुरूप है. उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, पुराने निवेशों के लिए पीपीटी के उपयोग को लेकर चीजें अस्पष्ट बनी हुई हैं. इस मामले में सीबीडीटी (केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड) से स्पष्ट मार्गदर्शन की जरूरत है.’’

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भारत और मॉरीशस ने दोहरा कराधान बचाव संधि (डीटीएए) में संशोधन के लिए नियमों और दिशानिर्देश से जुड़े एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं. इसमें यह तय करने के लिए एक व्यवस्था की गयी है कि कोई विदेशी निवेशक संधि लाभों का दावा करने के लिए पात्र है या नहीं.

कर विशेषज्ञों ने कहा कि नियमों में एक नया अनुच्छेद ‘27बी लाभ का अधिकार' जोड़ा गया है. समझौते पर सात मार्च को हस्ताक्षर किये गये और अब इसे सार्वजनिक किया गया है.

इसमें ‘प्रिंसिपल पर्पज टेस्ट' (पीपीटी) की व्यवस्था की गयी है. इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संधि का लाभ केवल वास्तविक उद्देश्य वाले लेन-देन को मिले और कराधान बचाव को कम किया जा सके.

नांगिया एंडरसन इंडिया के चेयरमैन राकेश नांगिया ने कहा कि संशोधन, संधि के दुरुपयोग के खिलाफ भारत का कदम है. यह वैश्विक प्रयासों के अनुरूप है. उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, पुराने निवेशों के लिए पीपीटी के उपयोग को लेकर चीजें अस्पष्ट बनी हुई हैं. इस मामले में सीबीडीटी (केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड) से स्पष्ट मार्गदर्शन की जरूरत है.''

नांगिया ने कहा कि इसके अलावा, संधि की प्रस्तावना में ‘द्विपक्षीय व्यापार और निवेश को प्रोत्साहित करने का' वाक्यांश का छूटना द्विपक्षीय निवेश को बढ़ावा देने के बजाय कर चोरी को रोकने की दिशा में ध्यान केंद्रित करने का सुझाव देता है.

उन्होंने कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय कर सहयोग मानकों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को बताता है. साथ ही यह भारत-मॉरीशस गलियारे का लाभ उठाने वाले निवेशकों के लिए स्थिति पर गौर करने का भी मामला है.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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