अमेरिका में आएगा सबसे बड़ी मंदी का बुरा दौर? जानें क्या कहते हैं अर्थशास्त्री और विशेषज्ञ

"अर्थव्यवस्था (Economy) का धराशाई होना टाला नहीं जा सकता. अब यह बात इस प्रश्न से परे हो गई है कि क्या मंदी आएगी या नहीं, अब मुद्दा यह है कि इसका कितना नुकसान होगा और यह कितने समय तक रहेगी." - Lindsey Piegza, chief economist for Stifel Nicolaus & Co.

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US Economy में मंदी के संकेत बढ़ते जा रहे हैं (प्रतीकात्मक तस्वीर)

अमेरिका (US) में आर्थिक मंदी (Economic Recession) आने के संकेत बढ़ते जा रहे हैं. अमेरिका की अर्थव्यवस्था में मंदी का असर पूरी दुनिया पर पड़ता है. राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) की गिरती पोल रेटिंग भी चिंता बढ़ा रही हैं.  ब्लूमबर्ग के अनुसार, महंगाई बढ़ने के बाद इस साल पहली बार मई में निजी खर्जों में कमी आई और अमेरिकी निर्माण उद्योग (US Manufacturing Industry) जून में दो साल के निचले स्तर पर चला गया. जे पी मॉर्गन चेज़ एंड कंपनी के चीफ अमेरिकी अर्थशास्त्री माइकल फेरोली साल के मध्य के ताजा विकास आंकड़ों के बारे में कहते हैं, "सटीकता के साथ कहा जा सकता है कि मंदी बहुत करीब है". इस मंदी से कितना नुकसान होगा या यह कितनी लंबी चलेगी, इसी से तय होगा कि महंगाई कितनी देर तक रहने वाली है और सरकार अर्थव्यवस्था पर कितना भार झेल सकती है.  

अलाइंज़ एस ई के चीफ इकॉनमिक एडवाइज़र मोहम्मद एल इरिन कहते हैं कि  उन्हें चिंता है कि 1970 के दशक की गलती ना दोहराई जाए. जहां सरकार ने सरकार ने आर्थिक कमजोरी के जवाब में नीतियों को ढीला कर दिया था जबकि तंत्र से महंगाई कम नहीं नहीं हुई थी.  ब्लूमबर्ग के अर्थशास्त्री कहते हैं, "सरकार तब तक ऐसा नहीं करेगी जब तक महंगाई नीचे नहीं आ जाती. इसका मतलब यह है कि सरकार आर्थिक कमजोरी चरम पर जाने देगी, जिससे मंदी का समय बढ़ जाएगा."

सरकारी अधिकारी जेरोम पॉवेल कहते हैं कि मंदी का खतरा है लेकिन अर्थव्यवस्था अभी भी मजबूत है और मंदी से बचने के लिए ब्याज दरों को बढ़ाया जा सकता है. लेकिन उनकी इस बात से निजी अर्थशास्त्री सहमत नहीं है. नोकोलस एंड कंपनी की प्रमुख अर्थशास्त्री लिंडसी पीग्ज़ा कहती हैं, "अर्थव्यवस्था का धराशाई होना टाला नहीं जा सकता. अब यह बात इस प्रश्न से परे हो गई है कि क्या मंदी आएगी या नहीं, अब मुद्दा यह है कि इसका कितना नुकसान होगा और यह कितने समय तक रहेगी."

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जैसा की कुछ 40 साल पहले हुआ था कि सकल घरेलू उत्पाद में कमी इस वजह से आई थी कि सेंट्रल बैंक भागती उपभोक्ता दरों पर लगाम लगाने लगा था. सरकार की महंगाई दर उसके 2% के लक्ष्य से तिगुने पर पहुंच चुकी है. लेकिन 1980 के दशक या फिर 2007-09 की आर्थिक मंदी जैसा बुरा हाल नहीं होगा ऐसा सोचने के अच्छे कारण भी हैं. तब बेरोजगारी दर दहाई के आंकड़े में पहुंच गई थी. 

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फिलहाल उपभोक्ता, बैंक और हाउसिंग मार्केट सभी 2007-09 की मंदी की तुलना में किसी भी गड़बड़ी के लिए पहले से अधिक तैयार हैं. 

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डॉएचे बैंक सिक्योरिटी के चीफ अमेरिकी अर्थशास्त्री मैथ्यू लुजेटी कहते हैं, "प्राइवेट सेक्ट की बैलेंस शीट बेहतर है. मंदी के पहले दिखने वाली मुनाफाखोरी भी नहीं की जा देखी जा रही है." 

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अच्छी बात यह है कि सरकार ने लोगों की बचत बढ़ाने के लिए काफी पैसा दिया है. सरकारी आंकड़े के अनुसार, पहली तिमाही में घर का कर्ज डिस्पोजेबल पर्सनल इनकम के केवल 9.5% पर रहा. यह 2007 के आखिर में देखे गए 13.2% के आंकड़े से काफी कम है.  

बैंकों ने अपने हिस्से पर सरकार के ताजा स्ट्रेस टेस्ट पर एक्ट किया था, जिससे साबित हुआ था कि उनके पास बढती बेरोजगारी, गिरते रियल-एस्टेट के दाम और स्टॉक के मिश्रण से निपटने की क्षमता है.  

लेबर मार्केट में पहले ही कर्मचारियों की कमी है. इससे कंपनियां लोगों को कम नौकरी से निकालेंगी. खासकर अगर मंदी का असर धीमा रहा तो.  वेल्स फार्गो कॉपरेट एंड इंवेस्टमेंट बैंक के चीफ इकॉनमिस्ट कहते हैं, " पिछले 2 साल से कंपनियों को कर्मचारी नहीं मिल पा रहे हैं.

हमें नहीं लगता अधिक लोगों को निकाला जाएगा. कुछ अर्थशास्त्रियों को लगता है कि अलगी मंदी लबे समय तक रहेगी अगर सरकार अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए काम नहीं करती है. लेकिन सरकार ने संकेत दिया है कि अगर महंगाई बहुत बढ़ती है  तो वो ऐसा कर सकती है. पॉवेल ने सेंट्रल बैंकिंग कॉन्फ्रेंस में पिछले हफ्ते कहा कि कीमकों को स्थिर करने में विफल रहना अमेरिका को मंदी की तरफ धकेलने से अधिक बड़ी गलती होगी.  
 

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