- फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने नए प्रधान मंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नू का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है
- सेबेस्टियन लेकोर्नू को पिछले महीने ही फ्रांस का प्रधान मंत्री नियुक्त किया गया था
- नई कैबिनेट के बिना किसी बड़े बदलाव के ऐलान के बाद तीखी आलोचनाएं सामने आईं थीं
फ्रांस में न राजनीतिक संकट कम होने का नाम ले रही न राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की परेशानी ही कम हो रही है. राष्ट्रपति मैक्रॉन ने सोमवार, 6 अक्टूबर को नए नवेले प्रधान मंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नू का इस्तीफा स्वीकार कर लिया. नई कैबिनेट के ऐलान के कुछ घंटे के अंदर ही इस तरह नए प्रधान मंत्री के इस्तीफे से यह यूरोपीय देश राजनीतिक गतिरोध में और अधिक फंस गया है.
गौरतलब है कि मैक्रों ने पिछले महीने ही प्रधान मंत्री पद के लिए लेकोर्नू को नामित किया था. लेकिन रविवार की देर रात जिस तरह मैक्रो ने बड़े पैमाने पर बिना किसी बदलाव ने नए कैबिनेट लाइनअप का ऐलान किया था, उसकी तीखी आलोचना की जा रही थी. अब इस ऐलान के कुछ घंटे बाद ही प्रधान मंत्री के इस्तीफे की खबर सामने आ गई है.
कुछ घंटे पहले ही किया था कैबिनेट का ऐलान
राष्ट्रपति मैक्रों ने रविवार की रात (स्थानीय समयानुसार) एक नई सरकार का ऐलान किया था. प्रधान मंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नु ने नेतृत्व में काफी हद तक परिचित चेहरों को कैबिनेट में शामिल किया गया था. मैक्रों के अंदर सातवें प्रधान मंत्री बने लेकोर्नू की नियुक्ति के लगभग एक महीने बाद नई कैबिनेट लाइनअप देश के सामने रखा गया. लेकिन अब खुद प्रधान मंत्री ने ही इस्तीफा दे दिया है.
फ्रांस की हालत इस समय खास्ताहाल नजर आ रही है. न्यूज एजेंसी एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार पिछले सप्ताह जारी आधिकारिक आंकड़ों से पता चला कि फ्रांस का सार्वजनिक ऋण (कर्जा) रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है. फ्रांस का लोन से GDP अनुपात अब ग्रीस और इटली के बाद यूरोपीय यूनियन का तीसरा सबसे बड़ा है, और यूरोपीय संघ के नियमों के तहत अनुमति मिले स्तर- 60 प्रतिशत से दोगुना के करीब है.
पिछली सरकारों ने पिछले तीन वार्षिक बजटों को बिना वोट के संसद में पेश किया था, इस तरीके को संविधान द्वारा अनुमति प्राप्त है लेकिन विपक्ष ने इसकी गहरी आलोचना की है. लेकिन लेकोर्नू ने पिछले सप्ताह यह सुनिश्चित करने का वादा किया था कि सांसद विधेयक पर मतदान करने में सक्षम हों.
मैक्रों का दांव उल्टा पड़ गया
दरअसल मैक्रों ने अपनी स्थित को मजबूत करने की उम्मीद में पिछले साल के मध्य में आकस्मिक संसदीय चुनाव करा दिया. इसके बाद से फ्रांस राजनीतिक गतिरोध में फंस गया है. मैक्रों का यह कदम उलटा पड़ गया और विधानसभा में मैक्रों का गुट अल्पमत में आ गया है.