पाकिस्तान लगातार आर्थिक संकट से गुजर रहा है
पाकिस्तान अपने आर्थिक संकट को हल करने की कोशिश करते हुए श्रीलंका की नकल कर रहा है, अपनी पिछली गलतियों के साथ-साथ वर्तमान में घरेलू स्तर पर होने वाली घटनाओं पर पाकिस्तान की सरकार ध्यान नहीं दे रही है. साथ ही पाकिस्तान उन सबक की अनदेखी कर रहा है जो वो श्रीलंका से सीख सकता था. ट्रू सीलोन की रिपोर्ट के अनुसार, श्रीलंका की तरह ही पाकिस्तान भी महत्वाकांक्षी राजनीतिक नेतृत्व और अत्यधिक बाहरी उधार के परिणामस्वरूप आर्थिक तौर पर लगातार कमजोर हो रहा है. संभव है कि आने वाले समय में श्रीलंका की ही तरह पाकिस्तान भी विदेशी मुद्रा भंडार, भोजन, ईंधन और दवाओं की कमी जैसे संकट से जूझ सकता है.
5 बड़ी वजहें-
- श्रीलंका की ही तरह पाकिस्तान ने भी अपने 'ऑल वेदर फ्रेंड' चीन से व्यावसायिक दरों पर भारी कर्ज ले रखी है.ट्रू सीलोन की रिपोर्ट के अनुसार, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की आड़ में, पाकिस्तान, श्रीलंका की तरह, अब चीन के 'कर्ज जाल' की चपेट में है.
- पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की निर्भरता आयात पर बहुत अधिक है. खाद्य और ईंधन दोनों के लिए उसे दूसरे देशों पर निर्भर रहना होता है. बढ़ती वैश्विक कीमतों के परिणामस्वरूप पाकिस्तान में आयात बिल में भारी वृद्धि हुई है. जिस कारण विदेशी मुद्रा भंडार पाकिस्तान में तेजी से कम हो रहे हैं. अकेले पेट्रोलियम उत्पादों के आयात बिल में वित्त वर्ष 2021-22 के पहले दस महीनों में लगभग 95 प्रतिशत की उछाल दर्ज की गयी है.
- विदेश निवेश में गिरावट के परिणामस्वरूप देश में डॉलर की भारी कमी हो गई है और साथ ही पाकिस्तानी रुपये का मूल्य भी डॉलर के मुकाबले तेजी से गिर रहा है. यह बिल्कुल मार्च 2022 में श्रीलंकाई रुपये की गिरावट की तरह ही है.
- पाकिस्तान ने अस्तित्व में आने के बाद से 22 बार अपने आर्थिक संकट को दूर करने के लिए आईएमएफ से सहायता ली है. आईएमएफ की तरफ से आखिरी बार 2019 में पाकिस्तान को सहायता दी गयी थी. वहीं हाल के दिनों में पेट्रोल और डीजल के लिए घोषित भारी सब्सिडी को कम करने के मुद्दे पर पाकिस्तान की सरकार गंभीर नहीं है. ऐसे मे आईएमएफ से उसे आर्थिक संकट से बाहर आने के लिए मदद मिलने की उम्मीद भी कम दिख रही है. यह गलतियां ठीक श्रीलंका की ही तरह है.
- देश में बिगड़ती सुरक्षा स्थिति के साथ-साथ चल रही राजनीतिक उथल-पुथल के कारण विदेशी निवेश में भी काफी गिरावट देखने को मिल रही है. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश दोनों देश से बाहर जा रहे हैं. जिस कारण भी विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट देखी जा रही है.
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