अमेरिका में आज से होगा डोनाल्ड ट्रंप सरकार का आगाज, क्या भारत और चीन को देंगे टैरिफ का टेंशन

डोनाल्ड ट्रंप आज अमेरिका के नए राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभालेंगे. यह उनका दूसरा कार्यकाल होगा. इसके साथ ही इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि इस कार्यकाल में उनका चीन और भारत के साथ कैसा संबंध रहेगा. क्या इस कार्यकाल में भी इन देशों में टैरिफ वार चलेगा.

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नई दिल्ली:

डोनाल्ड ट्रंप आज राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे.आधिकारिक तौर पर अमेरिका के राष्ट्रपति पद संभालने से पहले ही वो अगले चार साल की अपनी योजनाएं बता चुके हैं. इससे लोगों को इस बात की झलक मिली है कि आने वाले दिनों में वो क्या करने वाले हैं. ट्रंप के आने के साथ ही एक बार फिर से टैरिफ वार (आयात शुल्क) शुरू होने की आशंका बलवती हो गई है. ऐसा इसलिए है कि ट्रंप अलग-अलग देशों पर टैरिक लगाने की चेतावनी दे चुके हैं. इसमें सबसे अधिक चिंता भारत और चीन को लेकर हैं. आइए देखते हैं कि ट्रंप सरकार में अगले चार साल इन देशों के लिए रिश्ते कैसे रह सकते हैं.

चीन से कैसे निपटेंगे ट्रंप

ट्रंप की प्राथमिक चुनौती चीन से से निपटने की होगी क्योंकि उसका उदय अमेरिकी हितों और यूनीपोलर वर्ल्ड में उसकी ताकत के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी. इसलिए उन्होंने पहले से ही पनामा नहर और आर्कटिक में चीनी चालों का मुकाबला करने की अपील की है. इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने कहा है कि अमेरिका को पनामा नहर वापस ले लेनी चाहिए और ग्रीनलैंड खरीद लेना चाहिए. उनकी टैरिफ नीति का उद्देश्य एक तर्कसंगत व्यापार प्रणाली बनाना है. चीन पर उनके तकनीकी प्रतिबंध इस क्षेत्र में अमेरिका की श्रेष्ठता के लिए एक चुनौती के रूप में उसके उदय को रोकना है. ट्रंप ताइवान में चीन की आक्रामकता और पूर्व और दक्षिण चीन सागर में उसकी घुसपैठ को रोकना चाहेंगे.

डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के उत्पादों पर 60 फीसदी से अधिक टैरिफ लगाने की चेतावनी दी है.

चीन का मुकाबला करने के लिए ट्रंप को पश्चिम एशिया में स्थिरता लानी होगी और यूक्रेन में एक ऐसे समझौते का रास्ता तैयार करने होगा रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन को भी स्वीकार्य हो. ट्रंप ने चुनाव प्रचार के दौरान वादा किया था कि चीनी उत्पादों पर 60 फीसदी तक टैरिफ लगाया जाएगा. ट्रंप भारत के खिलाफ भी टैरिफ वार की सियासत करते हैं. वो बहुत पहले से ही बाइक बनाने वाली अमेरिकी कंपनी हार्ले डेविडसन के उत्पादों पर भारत में लगने वाले टैक्स को लेकर सवाल उठाते रहे हैं. इसके लिए वो भारतीय उत्पादों पर हैवी टैरिफ लगाने की वकालत करते रहे हैं.

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क्या डॉलर के मुकाबले ब्रिक्स ला पाएगा अपनी मुद्रा

बीते साल रूस के कजान में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने संगठन के सदस्य देशों से अपनी-अपनी करेंसी में कारोबार पर जोर दिया था. इसे ब्रिक्स की अपनी करेंसी बनाने की ओर पहले कदम के तौर पर देखा गया. जबकि इस समय पूरी दुनिया में इंटरमीडिएट करेंसी अमेरिकी डॉलर को माना जाता है. साल 2023 से ही उम्मीद जताई जा रही है कि ब्रिक्स अमेरिकी डॉलर के विकल्प के रूप में अपनी मुद्रा के चलन पर जोर देंगे. इस खबर को भी ट्रंप ने गंभीरता से लिया है. उन्होंने ब्रिक्स में शामिल देशों पर 100 फीसदी टैरिफ लगाने की धमकी दी है.ब्रिक्स में रूस के अलावा भारत और चीन भी सदस्य हैं. भारत और चीन दुनिया में तेजी से आकार ले रहीं दो अर्थव्यवस्थाएं हैं. 

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ऐसा लग रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप ने इस बार भारत को कम प्राथमिकता वाले देशों में रखा है.

अमेरिका और भारत को एक दूसरे से क्या चाहिए

ट्रंप ने अब तक भारत को कम प्राथमिकता दी है. उनका कहना है कि वो रिश्ते को लेन-देन के रूप में देखते हैं. भारत अमेरिका को क्या दे सकता है और उसे अमेरिका से क्या मिलना चाहिए.भारतीय बाजार को अमेरिकी वस्तुओं और निवेशकों के लिए खोलना ट्रंप को खुश करने का आसान तरीका है. अब यह भारत पर निर्भर है कि वो अपने बाजार को अमेरिकी कंपनियों के लिए कितना खोलता है.

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दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति एलन मस्क ट्रंप के सबसे करीबियों में शामिल हैं.

दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति एलन मस्क इस समय ट्रंप के सबसे करीबियों में शुमार हैं. मस्क स्टारलिंक और अपनी बिना ड्राइवर वाली टेस्ला कार को भारत में उतारना चाहेंगे. यहां भारत के लिए चिंता यह है कि अगर वह स्टारलिंक को इजाजत देता है, तो वह भारतीय टेलीकॉम कंपनियों के लिए परेशानी का सबब हो सकता है. वहीं अमेरिका से भारत को बहुत कुछ चाहिए. उसे बाग्लादेश में अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए ट्रंप का साथ चाहिए. भारत को यह भी एहसास दिलाना होगा कि रूस के साथ उसका रिश्ता अमेरिका से रिश्ते की कीमत पर नहीं है. भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए ट्रंप प्रशासन मदद भी चाहिए. लेकिन इन सबके लिए हमें कुछ महीनों का इंतजार करना पड़ सकता है.

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