न खुदा मिला न विसाल-ए-सनम… भारत-पाक पर ट्रंप की चालबाजी दोनों तरफ से बैकफायर करेगी? 

चीन के दो सीनियर रणनीतिक विशेषज्ञों ने बताया कि डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तान के करीब क्यों जा रहे हैं और चीन को साधने वाली उनकी यह रणनीति क्यों काम नहीं करेगी.

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप
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  • डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान के साथ संबंध बढ़ाकर चीन के वैश्विक प्रभाव को कम करने की रणनीति अपनाई है.
  • चीनी विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान चीन के साथ गहरे संबंधों की कीमत पर अमेरिका के साथ रिश्ते नहीं बनाएगा.
  • ट्रंप की भारत पर टैरिफ दबाव रणनीति भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और अमेरिकी निराशा को दर्शाती है.
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आजकल अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तान के लिए यही गीत गुनगुना रहे हैं. डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के सदाबहार दोस्त पाकिस्तान के साथ अमेरिका के संबंधों को तेजी दी है. ट्रंप पाकिस्तान के कंधे पर हाथ रखकर सपना देख रहे हैं कि वो इस तरह बीजिंग के वैश्विक प्रभाव को कम कर पाएंगे. लेकिन चीनी रणनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि इस्लामाबाद ट्रंप की इस रणनीति की सीमाओं को समझता है. पाकिस्तान चीन की दोस्ती की कीमत पर ट्रंप के यारी को स्वीकार नहीं करेगा.

अमेरिका का पाकिस्तान के करीब आना और चीन की मजबूत यारी

पिछले महीने, पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने फील्ड मार्शल के रूप में पदभार संभालने के बाद चीन की अपनी पहली आधिकारिक यात्रा की. उनकी यह यात्रा वाशिंगटन की पांच दिनों की यात्रा के तुरंत बाद हुई थी, जहां उन्होंने ट्रंप के साथ एक प्राइवेट लंच में भाग लिया. वह मुलाकात सीढ़ी बनी और ट्रंप ने अब पाकिस्तान के साथ तेल समझौते सहित विभिन्न क्षेत्रों में अमेरिका-पाकिस्तान सहयोग बढ़ाने की घोषणा की है.

एक हालिया "इकोनॉमिस्ट" लेख के अनुसार, जनरल मुनीर की अमेरिकी यात्रा का परिणाम अमेरिकी विदेश नीति में बदलाव का प्रतीक है, जिसका प्रभाव न केवल भारत बल्कि चीन और मध्य पूर्व पर भी पड़ेगा.

बीजिंग में अपने दौरे पर जनरल मुनीर ने चीनी उपराष्ट्रपति हान झेंग, विदेश मंत्री वांग यी और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के वरिष्ठ सदस्यों से मुलाकात की. हालांकि वो राष्ट्रपति शी जिनपिंग से नहीं मिले. यह दौरा उनके पूर्ववर्ती जनरल कमर जावेद बाजवा के विपरीत था क्योंकि जनरल बाजवा ने अपनी 2018 की चीन यात्रा के दौरान शी से मुलाकात की थी.

मुनीर की बैठकों के बार में जो आधिकारिक डिटेल्स आए हैं, उनमें कूटनीतिक बारीकियों पर जोर दिया गया और मजबूत द्विपक्षीय संबंधों को दोहराया गया है. लेकिन ट्रंप-मुनीर तालमेल के बारे में बीजिंग की धारणा अस्पष्ट बनी हुई है. विशेष रूप से एक वैश्विक शक्ति के रूप में चीन के उदय को रोकने के लिए इसे ट्रंप की खुली रणनीति के रूप में देखा जा रहा है.

चीन ने पाकिस्तान के साथ सदाबहार रिश्ते को बढ़ावा देने वाले दशकों से निवेश किया है. अब ट्रंप का पाकिस्तान पर यह लाड-प्यार देखते हुए बीजिंग की अपनी चिंताएं हैं.

क्यों ट्रंप का यह दांव काम नहीं करेगा?

चीन के दो सीनियर रणनीतिक विशेषज्ञों से न्यूज एजेंसी पीटीआई ने पहली बार बात की. उन्होंने ट्रंप की भूराजनीतिक रणनीति के व्यापक संदर्भ में उभरते नए वाशिंगटन-इस्लामाबाद धूरी पर चीन के दृष्टिकोण को रेखांकित किया. चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेम्परेरी इंटरनेशनल रिलेशंस में इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशियन स्टडी के डायरेक्टर हू शिशेंग ने कहा, "पाकिस्तान चीन के साथ अपने संबंधों की कीमत पर अमेरिका के साथ अपने संबंध विकसित नहीं करेगा." दक्षिण एशियाई राजनीति के विशेषज्ञ माने जाने वाले हू ने कहा, "पाकिस्तान ट्रंप के जाल में इतनी आसानी से नहीं फंसेगा."

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वहीं चीन के हुआक्सिया साउथ एशिया इकोनॉमिक एंड कल्चरल एक्सचेंज सेंटर के रिसर्च फेलो जेसी वांग ने कहा, "सतह पर, ट्रंप की पाकिस्तान को दी गई मिठाई चीन के लिए परेशानी की तरह लगती है, लेकिन वास्तव में, चीन-पाक संबंधों की संरचनात्मक स्थिरता को प्रभावित नहीं कर सकती है".

उन्होंने कहा, "अमेरिकी हस्तक्षेप ने कुछ समय के लिए भले भू-राजनीतिक शोर पैदा किया है, लेकिन चीन-पाकिस्तान निर्भरता की नींव को हिलाने की संभावना नहीं है.” वांग ने कहा, "पाकिस्तान के लिए आर्थिक रूप से 'दोनों तरह से मुनाफा कमाना' एक तर्कसंगत विकल्प है, लेकिन इसकी सुरक्षा और बुनियादी ढांचे की जीवन रेखाएं चीन से जुड़ी हुई हैं और रणनीतिक संतुलन नहीं झुका है."

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दोनों का तर्क है कि चीन-पाकिस्तान संबंध संरचनात्मक रूप से कहीं अधिक गहरे हैं, इस्लामाबाद इससे अलग होकर एक और समान संबंध नहीं बना सकता.

हू ने कहा कि ऐतिहासिक रूप से, अमेरिका और चीन के साथ पाकिस्तान के संबंध एक-दूसरे से उलझे बिना लंबे समय तक समानांतर रूप से विकसित हुए हैं. 1979 में अफगानिस्तान पर तत्कालीन सोवियत रूस के कब्जे और उसके बाद अफगान युद्ध में अमेरिका की तरफ से पाकिस्तान के शामिल होने के साथ वाशिंगटन और इस्लामाबाद नजदीक आए हैं.

भारत पर ट्रंप की टैरिफ दबाव की रणनीति काम करेगी?

भारत पर हाई टैरिफ लगाने की धमकी वाली ट्रंप की बयानबाजी पर हू ने कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि ट्रंप टीम भारत के भू-रणनीतिक महत्व से इनकार करती है. उन्होंने कहा कि ट्रंप प्रशासन इस तरीके से चाहता है कि भारत अमेरिकी वर्चस्व को मजबूत करे और चीन के उदय का मुकाबला करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाए.'' उन्होंने कहा, दरअसल भारत अपनी "रणनीतिक स्वायत्तता" पर जोर देता है और ट्रंप उससे अत्यधिक निराश हैं. ट्रंप का भारत पर यह निशाना उसकी झुंझलाहट को दर्शाता है.

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वहीं वांग ने कहा, "इसके अलावा, यह (टैरिफ वॉर) ट्रंप के डील करने की कला के दृष्टिकोण के अनुरूप है. वह अपने लिए मनचाही रियायतें हासिल करने के लिए अधिकतम दबाव डालते हैं." उन्होंने कहा, अगर भारत रणनीतिक संकल्प पर कायम रहता है तो ट्रंप भारत के प्रति अधिक सौहार्दपूर्ण रुख अपना सकते हैं.

उन्होंने कहा, "आखिरकार, चीन के उदय को रोकने के संबंध में, अमेरिका अपने औपचारिक सहयोगियों की तुलना में भारत से अधिक उम्मीदें रखता है, इस भूमिका के लिए भारत की बेहतर व्यापक ताकत को पहचानता है." वैकल्पिक रूप से, भारत चीन के साथ मेलजोल बढ़ाकर ट्रंप टीम पर दबाव डाल सकता है, उन्होंने कहा.

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