- नोबेल शांति पुरस्कार डोनाल्ड ट्रंप को नहीं दिया गया और मारिया कोरिना मचाडो को सम्मानित किया गया.
- ट्रंप की नीतियां नोबेल शांति पुरस्कार के मूल आदर्शों के खिलाफ मानी गईं.
- ट्रंप ने अमेरिका को कई महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संगठनों से अलग कर वैश्विक सहयोग को कमजोर किया है.
नोबेल शांति पुरस्कार को लेकर जारी तमाम अटकलों पर आज विराम लग गया. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को इस साल यह प्रतिष्ठित पुरस्कार नहीं दिया गया है. वहीं, मारिया कोरिना मचाडो को वेनेजुएला के लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
ट्रंप झूठा दावा कर रहे थे कि उन्होंने 8 जंग रुकवाई है. कम से कम भारत और पाकिस्तान के सीजफायर के मामले में तो वो सफेद झूठ ही बोलते रहे. कम से कम उन्हें गाजा में इजरायल और हमास के बीच सीजफायर समझौता करवाने के लिए उन्हें दुनिया के तमाम देश श्रेय दे रहे हैं. लेकिन वो डील कराने में भी उन्होंने देर कर दिया. इस डील के पहले ही नोबेल समिति ने अपना विजेता चुन लिया था. समिति के पांच सदस्यों ने सोमवार को अपनी अंतिम बैठक की. विजेता का चयन आमतौर पर समिति की अंतिम बैठक से कई दिन पहले किया जाता है.
नोबेल शांति पुरस्कार के लिए ट्रंप का दावा कमजोर होने के 5 कारण
- नोबेल के आदर्शों के खिलाफ नीतियां: ओस्लो के पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की प्रमुख नीना ग्रेगर के अनुसार, ट्रंप की नीतियाँ, विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय सहयोग, देशों के बीच भाईचारा और हथियारों को कम करने को बढ़ावा देने के नोबेल के मूल इरादों और वसीयत के खिलाफ जाती हैं.
- अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से अलगाव: ट्रंप ने "अमेरिका फर्स्ट" की नीतियों पर चलते हुए, अमेरिका को कई महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संगठनों और बहुपक्षीय संधियों से अलग कर लिया, जिससे वैश्विक सहयोग कमजोर हुआ.
- व्यापार युद्ध और धमकियां: उन्होंने सहयोगी और दुश्मन, दोनों देशों के खिलाफ व्यापार युद्ध शुरू किया. इसके अलावा, उन्होंने बलपूर्वक डेनमार्क से ग्रीनलैंड लेने की धमकी जैसी विवादास्पद नीतियां अपनाईं.
- घरेलू सैन्य हस्तक्षेप: ट्रंप ने अमेरिकी शहरों में अपनी सेना को भेजने की कार्रवाई का प्रस्ताव रखा या उसे अंजाम दिया, जो घरेलू शांति और स्थिरता के संदर्भ में चिंता पैदा करता है.
अभिव्यक्ति और शैक्षणिक स्वतंत्रता पर हमला: यह आरोप भी है कि उन्होंने अमेरिका के भीतर यूनिवर्सिटीज की शैक्षणिक स्वतंत्रता के साथ-साथ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी हमला किया, जो लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है.
एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार इतिहासकार और शांति पुरस्कार विशेषज्ञ एस्ले स्वेन ने बताया कि 2025 पुरस्कार विजेता की पसंद के लिए गाजा समझौते का "बिल्कुल कोई महत्व नहीं है" क्योंकि "नोबेल समिति ने पहले ही अपना निर्णय ले लिया है". उन्होंने कहा था, "ट्रंप इस साल पुरस्कार नहीं जीतेंगे. मैं 100 फीसदी आश्वस्त हूं."
यह तो बात रही गाजा डील की. इसके पहले भी शांति का नोबेल जीतने के लिए ट्रंप का दावा कमजोर नजर आ रहा था. एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार ओस्लो के पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट की प्रमुख नीना ग्रेगर ने कहा था कि, "गाजा के लिए शांति स्थापित करने की कोशिश के अलावा, हमने ऐसी नीतियां देखी हैं जो वास्तव में (अल्फ्रेड) नोबेल के इरादों और वसीयत में लिखी गई बातों के खिलाफ जाती हैं, विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय सहयोग, देशों के बीच भाईचारा और हथियारों को कम करने को बढ़ावा देने के लिए."
कई एक्सपर्ट ट्रंप के "शांतिदूत" के दावों को बढ़ा-चढ़ाकर कहा हुआ मानते हैं और उनकी "अमेरिका फर्स्ट" नीतियों के परिणामों पर चिंता जताते हैं. ग्रेगर के लिए, ट्रंप के काम नोबेल शांति पुरस्कार के आदर्शों के अनुरूप नहीं हैं, इसको साबित करने की लिस्ट लंबी है. ट्रंप ने अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय संगठनों और बहुपक्षीय संधियों से अलग कर लिया है. सहयोगी और दुश्मन देश, दोनों के खिला व्यापार युद्ध शुरू कर दिया है. वो बलपूर्वक डेनमार्क से ग्रीनलैंड लेने की धमकी दे रहे हैं, वो अमेरिकी शहरों में अपनी सेना को भेज रहे हैं. इतना ही नहीं वो अमेरिका के अंदर यूनिवर्सिटीज की शैक्षणिक स्वतंत्रता के साथ-साथ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला कर रहे हैं.