कई जगह से पड़ा काला, सुनीता को धरती पर लाने वाले कैप्सूल की हालत बता रही है वह कितना तपा होगा

कैप्‍सूल जब धरती के वायुमंडल में प्रवेश करता है, तो 3500 डिग्री फेरेनाइट से तपने के कारण अंदर बैठे अंतरिक्ष यात्रियों को यह किसी आग के गोले के समान लाल नजर आता है.

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कैप्‍सूल की हालत बता रही किस गर्मी से गुजरा होगा
फ्लोरिडा:

भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स को लेकर NASA और SpaceX का स्पेसक्राफ्ट ड्रैगन कैप्‍सूल धरती पर पहुंच चुका है. कैप्‍सूल का रंग बिल्‍कुल बदल गया. ये एकदम काला सा पड़ गया है. इस कैप्‍सूल की हालत बता रही है कि जब इसने पृथ्‍वी के वायुमंडल में प्रवेश किया होगा, तो कितना तपा होगा. इसकी वजह से कैप्‍सूल के अंदर का तापमान भी काफी बढ़ जाता है. एक यह भी वजह होती है कि लैंड करने के बाद कैप्‍सूल को तुरंत नहीं खोला जाता है. एक अनुमान के अनुसार कैप्‍सूल जब धरती के वायुमंडल में प्रवेश करता है, तो लगभग 3500 डिग्री फेरेनाइट से तपकर लाल गोले में बदल जाता है. 

चारों अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर ड्रैगन कैप्सूल समंदर में लैंड हुआ. लैंडिंग से ठीक पहले पैराशूट्स ने उसको धीरे धीरे उतारा. कैप्सूल का रंग काला पड़ गया था. यह बता रहा था कि वह कितना तपा होगा. कैप्सूल जब वायुमंडल में दाखिल हुआ तो घर्षण के कारण इतनना तपा कि कई जगह से वह जला हुआ दिखाई दे रहा था.

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Photo Credit: AFP अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर लौटे dragon capsule की तस्वीरें हैरान कर रही हैं. सफेद रंग का यह कैप्सूल काला पड़ गया. दरअसल यह एक ऐसा कवच था, जिसके अंदर सुनीता विलियम्स और बाकी तीन अंतरिक्ष यात्री सुरक्षित तरीके से धरती पर पहुंचे. इंसान के फौलादी इरादों को विज्ञान के चमत्कार का नमूना है यह कैप्सूल. लोहे को भी पानी कर देने वाले तापमान में भी सभी यात्री इसमें बैठकर सुरक्षित पहुंचे.    

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यह अंतरिक्ष यात्रियों के विमान यानी ड्रैगन कैप्सूल की दो तस्वीरें हैं. ऊपर वाली तस्वीर धरती से अंतरिक्ष में रवाना होने से पहले की है. दूसरी तस्वीर बुधवार सुबह समंदर में लैंडिंग के बाद की है. दोनों तस्वीरों के फर्क से आप समझ सकते हैं कि रॉकेट की यह 'नाक', जिसमें अंतरिक्ष यात्री बैठे होते हैं, वह कितनी संवेदनशील होती है. इस कैप्सूल की असली परीक्षा धरती पर लैडिंग के वक्त होती है. धरती के वायुमंडल की रगड़ उसे जला डालने के लिए बेताब रहती है. लेकिन विशेष धातुओं की परत एक कवच की तरह काम करती है.  

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कैप्‍सूल जब धरती के वायुमंडल में प्रवेश करता है, तो 3500 डिग्री फेरेनाइट से तपने के कारण अंदर बैठे अंतरिक्ष यात्रियों को यह किसी आग के गोले के समान लाल नजर आता है. ये नजारा हैरान करने वाला भी होता है कि कैसे इतने अधिक तापमान में कैप्‍सूल के अंदर बैठे यात्री सुरक्षित धरती पर लैंड कर जाता हैं. दरअसल, कैप्‍सूल ऐसे मैटेरियल का बना होता है कि अंदर तक उतना तापमान नहीं पहुंच पाता है. इसलिए बाहर के मुकाबले कैप्‍सूल के अंदर का तापमान काफी कम होता है. 

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धरती पर उतरते हुए ड्रैगन कैप्सूल कुछ इस तरह से नजर आ रहा था. यह वह लम्हा था जब वह धरती के वायुमंडल में घुसा ही था. धरती के वायुमंडल में मौजूद सूक्ष्म कणों, गैस आदि से इतनी रगड़ पैदा होती है कि कैप्सूल आग के गोले में बदल जाता है. यही वजह रहती है कि करीब 7से 10 मिनट तक कैप्सूल का संपर्क टूट जाता है.

किस मैटेरियल का बना होता है कैप्‍सूल 

ड्रैगन कैप्सूल कई अगल-अलग मैटेरियल से बना होता है. ड्रैगन कैप्सूल का प्राइमरी स्ट्रक्चर CFRP से बना है, इसमें वजन के अनुपात में असाधारण ताकत होती है, इसमें इरोजन यानी संक्षारण को रोकने की शक्ति होती है और यह कैप्सूल को स्थायित्व प्रदान करती है. सके कुछ पार्ट, जैसे कैप्सूल का फ्रेम और कुछ संरचनात्मक तत्व, उच्च शक्ति वाले एल्यूमीनियम मिश्र धातु (जैसे, 2219 और 6061) से बने होते हैं. ड्रैगन कैप्सूल की हीट शील्ड PICA-X नामक एक मैटेरियल से बनी है, जो फेनोलिक इंप्रेग्नेटेड कार्बन एब्लेटर (PICA) मैटेरियल का एक प्रकार है. PICA-X धरकी के वायुमंडल में फिर से प्रवेश के दौरान आग के गोले में बदलने के बावजूद थर्मल सुरक्षा प्रदान करता है.

यह अंतरिक्ष यात्रियों की घरवापसी का सबसे रोमांचक पल है. करीब 46 मिनट के सफर के बाद ड्रैगन कैप्सूल किसी माहिर पैराशूटर की तरह इस तरह फ्लोरिडा के तट पर समंदर में उतरा. जैसे ही यह लम्हा स्क्रीन पर आया, नासा के वैज्ञानिकों के चेहरे खुशी से दमक उठे. इस पूरी अभियान की लाइव कमेंट्री कर रहीं नासा की कमेंटेटर भी चहक उठीं. समंदर में इस कामयाबी की 'छपाक' को न जाने कितनों ने अपने भीतर महसूस किया. अमेरिका झूम रहा था तो पटाखे भारत में भी जल रहे थे.    

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