China के विरोध के बावजूद Taiwan पहुंचीं अमेरिकी नेता Nancy Pelosi
चीन ने नैन्सी पेलोसी के ताइवान दौरे को "बेहद खतरनाक" बताया है. चीन की तरफ से चेतावनी जारी करने, टैंकों, युद्धपोत को तैनात करने के बाद, अमेरिका ने भी ताइवान के पास अपने चार युद्धपोत तैनात किए थे. चीन ने ताइवान के पास अपनी समुद्री सीमा के निकट एक सैन्य अभ्यास भी किया था लेकिन इसके बावजूद अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की स्पीकर की ताइवान यात्रा नहीं रुकी.
ये है चीन-ताइवान विवाद के 20 अहम बिंदु
- कम्युनिस्ट पार्टी के नेता शी चिनफिंग (Xi Jinping) पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (China) के राष्ट्रपति हैं और लोकतंत्र समर्थनक त्साई इन वेन (Tsai Ing-Wen) रिपब्लिक ऑफ चाइना की राष्ट्रपति हैं जिसे हम ताइवान (Taiwan) के नाम से जानते हैं.
- पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना, यानि जिस देश को सामान्य तौर पर हम चीन कहते हैं उसका दावा है कि ताइवान उसी का हिस्सा है, जबकि ताइवान खुद को एक अलग देश मानता है.
- ताइवान को अमेरिका का समर्थन मिलने का बाद चीन ताइवान से और चिढ़ गया है. चीन इसे अपनी संप्रभुता पर अमेरिकी हमले की तरह देखता है.
- प्राचीन काल में चीन और ताइवान दोनों कई सौ सालों तक एक ही राजशाही साम्राज्य का हिस्सा रहे. इसके बाद यहां यूरोपीय और पश्चिमी देशों के लोग पहुंचे और चिंग साम्राज्य का पतन होना शुरू हुआ जिन्होंने मिंग साम्राज्य के लोगों को वहां से हरा कर भगाया था. 1885 तक चिंग साम्राज्य ने ताइवान को अपने साम्राज्य का संपूर्ण राज्य घोषित कर दिया.
- चीन और जापान के प्रथम युद्ध के दौरान चीन के चिंग साम्राज्य से जापान जीत गया और चीन को ताइवान उसे सौंपना पड़ा.
- दूसरे विश्व युद्ध के बाद जापान की हार हुई और चीन जीतने वालों के साथ था. अमेरिका और ब्रिटेन ने जीत के उपहार में चीनी कमांडर चैंग काई शेक को ताइवान सौंप दिया. चैंग काई शेक का नियंत्रण आज के ताइवान और चीन के बड़े हिस्से पर था. इसे रिपब्लिक ऑफ चाइना कहा जाता था. चैंग काई शेक की की राजनैतिक पार्टी का नाम था कुओमिनतैंग, यानि चाइनीज़ नेशनलिस्ट पार्टी.
- चैंग काई शेक ने अपने अधिकार वाले इलाके पर 25 दिसंबर 1947 को एक संविधान लागू कर दिया जिसे कॉन्सटिट्यूशन ऑफ द रिपब्लिक ऑफ चाइना कहा गया.
- लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के बाद यहां चाइनीज़ नेशनलिस्ट पार्टी का चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ सत्ता के लिए संघर्ष शुरू हो गया. 1948 में चीन में इन दोनों पार्टियों के विचारधारा वाले लोगों के बीच एक गृहयुद्ध शुरू हो गया. नेशनल असेंबली में कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ एक आपात स्तिथी जैसा कानून घोषित कर दिया गया.
- लेकिन माओं की कम्युनिस्ट आर्मी ने चैंग की नेशनलिस्ट धड़े वाली पार्टी कुओमिनतैंग को सत्ता से बेदखल कर हरा दिया. चैंग और उनके सहयोगी भाग कर आज के ताइवान पहुंचना पड़ा. 1949 में चीन में कम्युनिस्ट पार्टी तानाशाही कायम हुई. और ताइवान में मार्शल लॉ लागू हुआ.
- चाइनीज़ नेशनलिस्ट पार्टी ने ताइवान को एक अलग देश घोषित कर दिया और कहा कि जिस हिस्से पर उनका नियंत्रण है वही रिपब्लिक ऑफ चाइना नाम का हकदार है. कम्युनिस्ट पार्टी ने बाकी हिस्से का नाम बदलकर पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना रख दिया.
- साल 1966 में एक्सपोर्ट प्रोसेस का ज़ोन बनने के बाद ताइवान के विकास की राह खुली. 1986 में ताइवान में बनी डेमोक्रेटिव प्रोग्रेसिव पार्टी.
- इस दौरान चीन ने एक देश दो सिस्टम का नया फॉर्मुला निकाला. चीन ने कहा कि अगर वो ये सिस्टम मान लेता है तो ताइवान को काफी स्वायत्ता दी जाएगी. ताइवान ने यह फॉर्मुला मानने से इंकार कर दिया. लेकिन चीन को लेकर उसका रवैया इस दौरान नरम हुआ.
- 13) चीन के बहकावे में आकर 1971 में रिपब्लिक ऑफ चाइना यानि ताइवान ने संयुक्त राष्ट्र से खुद को बाहर कर लिया. लेकिन इसके बाद चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने ताइवान में लोकतंत्र समर्थकों पर अत्याचार करना शुरू किया.
- साल 1987 में ताइवान में 1949 से जारी मार्शल लॉ ख़त्म किया गया.
- ताइवान में नए राजनैतिक दल बनाने और समाचार पत्रों पर बैन खत्म हुआ. ताइवान में लोकतंत्र पनपा और चीन और ताइवान के लोगों के बीच आना-जाना शुरू हुआ.
- साल 1991 में ताइवान ने घोषणा की थी कि चीन के साथ उसका बरसों पुराना विवाद खत्म होता है. लेकिन बाद के सालों में ताइवान में आजादी की आवाज तेज होने लगी.
- राष्ट्रपति त्साई इन वेन डेमोक्रेटिव प्रोग्रेसिव पार्टी की मुखिया हैं. यह पार्टी चीन से आजादी का समर्थन करती है.
- साई ने 2016 में जिस नेता को हराया था उसकी पार्टी चीन के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश कर रही थी, लेकिन त्साई इन वेन किसी चीनी ताइवान के विकल्प को नहीं मानतीं. उनका कहना है कि ताइवान पहले से आजाद देश है.
- चीन ताइवान को धमकी दे चुका है कि उसे आज नहीं तो कल चीन का पूर्ण रूप से हिस्सा बनना होगा.
- वहीं ताइवान के लोग लोकतंत्र के हिमायती हैं वो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की तानाशाही के सख़्त खिलाफ हैं.
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