दूसरे देश का साथ दिया तो छिन जाएगी नागरिकता… थाईलैंड से जंग के बाद कंबोडिया में आया नया कानून

कंबोडिया सरकार पर मानवाधिकार समूहों ने लंबे समय से विपक्ष और वैध राजनीतिक बहस को दबाने के लिए कठोर कानूनों का उपयोग करने का आरोप लगाया है.

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थाईलैंड से जंग के बाद कंबोडिया में आया नागरिकत छीनने वाला नया कानून
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कंबोडिया ने एक नया कानून पास किया है जो विदेशी साठगांठ के आरोप में नागरिकता छीनने की अनुमति देता है.
कानून को कंबोडिया की नेशनल असेंबली में मौजूद सभी सांसदों ने सर्वसम्मति से मंजूरी दी है.
मानवाधिकार समूहों ने इस कानून को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर विनाशकारी प्रभाव डालने वाला बताया है.

थाईलैंड से सशस्त्र संघर्ष के बाद कंबोडिया में नया कानून बन गया है. अब अगर कंबोडिया की सरकार को पता चलता है कि उसके किसी नागरिक ने किसी दूसरे देश के साथ कोई साठगांठ किया है तो वह उसकी नागरिकता ही छीन लेगी. न्यूज एजेंसी एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार कंबोडिया के सांसदों ने सोमवार, 25 अगस्त को एक कानून पास किया, जिसमें विदेशी मिलीभगत के आरोप वाले लोगों से उनकी नागरिकता छीनने की अनुमति दी गई. लेकिन दूसरी तरफ मानवाधिकार समूहों को डर है कि इस कानून का इस्तेमाल सरकार के खिलाफ असहमति को खत्म करने के लिए किया जाएगा.

रिपोर्ट के अनुसार कंबोडिया के नेशनल असेंबली सत्र में मौजूद सभी 120 सांसदों - जिनमें प्रधान मंत्री हुन मैनेट भी शामिल हैं - ने बिल को मंजूरी देने के लिए सर्वसम्मति से वोट डाला. यानी कोई इस कानून के विरोध में नहीं था.

पहले ही बदल दिया गया था संविधान

जुलाई की शुरूआत में कंबोडिया के अंदर संविधान में संशोधन करके ऐसे कानून की अनुमति दी गई थी जिसके तहत विदेशी शक्तियों के साथ मिलीभगत करने वाले लोगों की नागरिकता छीन ली जाएगी. अब उस कानून को भी पास किया गया है. तब कंबोडिया के न्याय मंत्री कोएउट रिथ ने इसकी आलोचकों को खारिज करते हुए कहा था, "अगर आप देश के साथ विश्वासघात करेंगे तो देश आपको नहीं रखेगा."

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न्याय मंत्री ने दावा किया कि जिन लोगों ने राष्ट्रीय हितों को नुकसान नहीं पहुंचाया है, उनकी नागरिकता नहीं छीनी जाएगी, उन्होंने कहा कि उन्हें अभी भी "अन्य आरोपों का सामना करना पड़ सकता है".

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क्यों हो रहा विरोध?

अधिकार समूहों ने लंबे समय से कंबोडिया सरकार पर विपक्ष और वैध राजनीतिक बहस को दबाने के लिए कठोर कानूनों का उपयोग करने का आरोप लगाया है. 50 मानवाधिकार समूहों के एक गठबंधन ने रविवार को एक बयान जारी कर चेतावनी दी कि यह कानून "अस्पष्ट रूप से लिखा गया है" और इससे "सभी कंबोडियाई नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा".

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अभी कानून के लागू होने से पहले इस बिल को अभी भी कंबोडिया के ऊपरी सदन द्वारा पारित किया जाना चाहिए, और उसके बाद राष्ट्रपति इसपर मुहर लगाएंगे. हालांकि दोनों को रबर-स्टैंप कदम माना जाता है. यानी इसका कानून बनना साफ है.

बता दें कि थाई और कंबोडियाई सेनाओं के बीच उनकी सीमा पर 24 जुलाई को सशस्त्र झड़पें शुरू हुई थीं. दोनों आसियान सदस्य देश 28 जुलाई की दोपहर को युद्धविराम पर सहमत हुए, जो उसी दिन आधी रात से प्रभावी हुआ.

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