- फ्रांस में राष्ट्रपति मैक्रों के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हो रहे हैं, जिनमें हिंसा और तोड़फोड़ शामिल है.
- प्रदर्शनकारियों ने राजधानी पेरिस सहित कई शहरों में सड़कें बंद कीं और आगजनी की घटना को अंजाम दिया.
- पूर्व पीएम फ्रांस्वा बायरू ने आर्थिक नियंत्रणों के बाद विश्वास मत खोकर इस्तीफा दे दिया था, जिससे संकट बढ़ा.
फ्रांस में बुधवार को बड़े पैमाने पर राष्ट्रपति इमैनुएल मैंक्रो के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. प्रदर्शनकारियों ने पुलिस के साथ झड़प की, सड़कें ब्लॉक और राजधानी पेरिस के साथ बाकी शहरों में आगजनी और तोड़फोड़ की. देश में मैक्रों और उनकी सरकार के खिलाफ जनता का गुस्सा और बढ़ गया है. मैक्रों ने पिछले दो सालों में फ्रांस के पांचवें प्रधानमंत्री के तौर पर अपने करीबी सेबेस्टियन लेकोर्नू को नियुक्त किया है. देश में हो रहे प्रदर्शनों ने राजनीतिक संकट और बढ़ा दिया है. एक नजर डालिए कि फ्रांस में प्रदर्शन क्यों हो रहे हैं और प्रदर्शनकारियों की मांगें क्या-क्या है.
कैसे हुई प्रदर्शनों की शुरुआत
फ्रांस में पिछले एक हफ्ते से राजनीतिक उथल-पुथल जारी थी और इस वजह से ये प्रदर्शन हो रहे हैं. सोमवार को देश के पूर्व पीएम फ्रांस्वा बायरू ने बड़े स्तर पर आर्थिक नियंत्रणों का ऐलान किया. इसके बाद उन्होंने सदन में विश्वास मत खो दिया. बायरू ने जो नियंत्रण लागू किए उनमें पब्लिक हॉलीडेज में कटौती और पेंशन पर रोक शामिल थी. हार के तुरंत बाद बायरू ने इस्तीफा दे दिया.मैक्रों ने मंगलवार को रक्षा मंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नू को नया पीएम बनाया.
सिर्फ केवल 12 महीनों में इस पद पर आसीन होने वाले वह चौथे व्यक्ति हैं. शीर्ष पदों पर तेजी से हुए बदलाव ने फ्रांस की राजनीतिक अस्थिरता को उजागर किया और जनता की निराशा को और बढ़ा दिया. आलोचकों ने मैक्रों पर बड़े स्तर पर असंतोष को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया. यूनियनों और विपक्षी नेताओं ने कहा कि बायरू के इस्तीफे से उनकी चिंताएं कम नहीं हुईं.
आर्थिक संकट में फ्रांस
फ्रांस का राजनीतिक संकट बिगड़ती सार्वजनिक वित्तीय स्थिति की पृष्ठभूमि में सामने आ रहा है. मैक्रों ने अब एक साल में अपना चौथा प्रधानमंत्री नियुक्त किया है, जबकि देश बढ़ते घाटे, बढ़ती उधारी लागत और खर्च सुधारों पर सहमत होने में असमर्थ संसद से जूझ रहा है. पहले महामारी, फिर एनर्जी क्राइसिस, फ्रांस साल 1973 से अपने बजट को संतुलित नहीं कर पाया है, स्थिर विकास और सस्ते उधार के जरिये से देश चल रहा है.
मैक्रों ने, पहले वित्त मंत्री के तौर पर और बाद में राष्ट्रपति के रूप में, कर कटौती, खर्चों को एडजस्ट करना और रिटायरमेंट की उम्र को 62 से बढ़ाकर 64 करने जैसे सुधारों को आगे बढ़ाया. लेकिन कर्ज पहले से ही ज्यादा था. साल 2008 में तो कर्ज जीडीपी से 90 फीसदी ज्यादा हो गया. महामारी और फिर रूस-यूक्रेन के हमले ने स्थिति को और बदतर बना दिया. फ्रांस ने घरों और व्यवसायों की सुरक्षा के लिए सब्सिडी पर भारी खर्च किया, जबकि दुनिया भर में ब्याज दरें तेजी से बढ़ीं.
'ब्लॉक एवरीथिंग' बना मुसीबत
फ्रांस में हो रहे प्रदर्शनों को 'ब्लॉक एवरीथिंग' आंदोलन नाम दिया गयर है. प्रदर्शन में हजारों लोग सड़कों पर उतर आए और हिंसा के शुरुआती घंटों में करीब 300 लोगों को गिरफ्तार किया गया. राजधानी पेरिस में प्रदर्शनकारियों ने बैरिकेड्स में आग लगा दी और पुलिस के आंसू गैस के गोले दागकर उन्हें तितर-बितर किया गया. गृह मंत्री ब्रूनो रिटेलेउ ने कहा कि रेनेस में एक बस में आग लगा दी गई और बिजली की लाइन को नुकसान पहुंचा है और इसके बाद सदर्न-वेस्टर्न हिस्से में ट्रेन सर्विसेज रोक दी गईं हैं.
उन्होंने प्रदर्शनकारियों पर 'विद्रोह का माहौल' बनाने की कोशिश करने का आरोप लगाया. मैक्रों सरकार ने बड़े पैमाने पर अशांति को रोकने के प्रयास में देश भर में असाधारण रूप से 80,000 पुलिस अधिकारियों को तैनात किया था. इसके बावजूद, प्रदर्शनकारियों ने कई क्षेत्रों में बैरिकेड्स लगाए, आगजनी की और प्रदर्शन किए. पेरिस में कूड़ेदानों में आग लगा दी गई, जबकि यात्रियों ने प्रमुख मार्गों पर जाम की सूचना दी.
फ्रांस, यूरोपियन यूनियन में जीडीपी की तुलना में सबसे ज्यादा कर्ज वाले देशों में एक है. देश में अब स्कूलों, हेल्थ सर्विसेज और वेलफेयर स्कीम पर खर्च करने के लिए रकम बची ही नहीं है. प्रदर्शनकारी लगातार उग्र हो रहे हैं और उनकी सिर्फ एक मांग है, मैंक्रो का इस्तीफा. अब देखना होगा कि देश में स्थिति कब और कैसे सामान्य होगी.