पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, मालदीव और अब बांग्लादेश...चालाक चीन रच रहा कैसा चक्रव्यूह?

Bangladesh Violence : बांग्लादेश की हिंसा में चीन का नाम आ रहा है. यह बांग्लादेश के साथ-साथ भारत और उसके सभी पड़ोसी देशों के लिए खतरनाक बात है. क्या बांग्लादेश भी चीन के चक्रव्यूह का एक द्वार बनने जा रहा है...

विज्ञापन
Read Time: 8 mins
बांग्लादेश को लेकर आशंका है कि कहीं वहां भी चीन की कठपुतली सरकार न बन जाए.

भारत तेजी से दुनिया के ताकतवर मुल्कों में शुमार होता जा रहा है. चाहे वो सैन्य शक्ति का मामला हो या आर्थिक तौर पर संपन्नता का. अमेरिका और यूरोप का अब तक चीन में निवेश होता था, लेकिन कोराना के बाद अमेरिका और यूरोप ने वहां निवेश कम कर दिया. यहां तक की पहले से किए चीन में निवेश को भारत सहित अन्य देशों में निवेश करना शुरू कर दिया. इससे चीन को आर्थिक झटका लगने लगा और कोरोना के बाद अब तक चीन की अर्थव्यवस्था उबर नहीं सकी है. इससे चीन एक हद तक भारत पर चिढ़ा हुआ है. सीमा पर तनाव पैदा कर वह भारत पर दबाव बना रहा है कि भारत उसके हितों से न खेले. मसलन भारत अपने यहां निवेश लाने का प्रयास न करे. अमेरिका, रूस और यूरोप से भारत के संबंध अच्छे न रहे और वह चीन के अनुसार चले. भारत में भी प्रदर्शनों और आंदोलनों के पीछे चीन का नाम आता रहता है. क्या चीन की योजना भारत में भी हिंसा भड़काने की है? इस बात का जवाब तो भविष्य में मिलेगा, लेकिन यह तो तय है भारत सरकार चीन को कड़ा सबक सिखा रही है और चीन के लिए भारत में यह करना संभव नहीं लगता. मगर चीन भारत के खिलाफ एक ऐसा चक्रव्यूह रच रहा है, जिससे भारत के सभी पड़ोसी उसकी कठपुतली बन जाएं और उसके कहे अनुसार चलें. इसी कारण वह अपने और भारत के पड़ोस के सभी देशों को अस्थिर और अशांत कर रहा है.

बांग्लादेश से चीन को क्या थी दिक्कत?

हाल का उदाहरण बांग्लादेश है. बांग्लादेश में एक ऐसी सरकार थी, जो अपने लोगों के लिए स्वतंत्र फैसले ले रही थी. वह भारत से तो अच्छे संबंध रख ही रही थी, चीन, अमेरिका और यूरोप से भी संबंधों को मैनेज कर रही थी. भारत-अमेरिका-यूरोप के मानवाधिकारों पर टिप्पणी और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर उठाए गए सवालों पर अपने देश की सुरक्षा भी कर रही थी और जवाब भी दे रही थी. जाहिर है शेख हसीना की सरकार कठपुतली सरकार न होकर स्वतंत्र फैसले ले रही थी. अपने देश के हित में ले रही थी. उदाहरण के तौर पर बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने 26 जून 2024 को कहा था कि उनका देश भारत और चीन के सीमापार तीस्ता नदी पर जलाशय से संबंधित एक बड़ी परियोजना निर्माण के लिए प्रस्तावों पर विचार करेगा तथा बेहतर प्रस्ताव को स्वीकार करेगा. हम अपने देश की विकास संबंधी आवश्यकताओं के आधार पर अपनी मित्रता बनाए रखते हैं. मगर, चीन को यह सब रास नहीं आ रहा था. इसके पीछे कारण यह है कि चीन बांग्लादेश में एक ऐसी सरकार चाहता है, जो उसके कहे पर चले. उसके हितों के हिसाब से फैसले ले और उसके दोस्तों से दोस्ती रखे और उसके दुश्मनों से दुश्मनी. आरक्षण को लेकर छात्रों का आंदोलन शुरू हुआ तो सत्ता के लिए बंटी राजनीति को साध कर चीन और पाकिस्तान ने बांग्लादेश में खेल कर दिया. इन दोनों का नाम इस साजिश में शामिल होने का कई रिपोर्ट में दावा किया गया है. अब चीन की कोशिश होगी कि बांग्लादेश की नई सरकार उसकी कठपुतली की तरह काम करे.

नेपाल में भी ऐसा ही किया था

चीन बांग्लादेश में क्या चाहता है? इसको और अच्छे से समझने के लिए नेपाल की पिछली ओली सरकार को याद करें. चीन के समर्थन से केपी शर्मा ओली ने पिछली बार सरकार बनाई तो भारत से संबंधों को इतिहास के सबसे निचले स्तर पर ले गए. स्थिति यह हो गई थी कि भारत और नेपाल के नागरिकों तक में कटुता बढ़ने लगी थी. अब एक बार फिर ओली प्रधानमंत्री बने हैं, लेकिन इस बार उनके पास वैसी ताकत नहीं है, जैसी पिछली बार थी. मगर चीन किसी भी कीमत पर ओली को सत्ता में बैठाए रखना चाहता है, जिससे नेपाल उसके अनुसार फैसले ले और भारत पर उसके जरिए नजर भी बनाए रखा जा सके. मगर भारत चीन के मंसूबों को लगातार फेल कर दे रहा है. नेपाल के अन्य राजनीतिक दलों और जनता को यह समझ आ रहा है कि अगर भारत से संबंध खराब हुए तो चीन उनके साथ गुलामों सा व्यवहार करने लगेगा. इसी कारण वे ओली सरकार को नियंत्रण में रख रहे हैं. हालांकि, ओली चीन के इशारों पर अब भी काम कर रहे हैं.

Advertisement

श्रीलंका को कर दिया था बर्बाद

श्रीलंका की गोटबाया राजपक्षे सरकार के साथ क्या हुआ? यह तो याद ही होगा. गोटबाया राजपक्षे के जरिए चीन ने श्रीलंका की जमीन तक पर कब्जा कर लिया. कर्ज के चक्कर में ऐसा फंसाया कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था ही चरमरा गई और वहां से राजपक्षे को भागना पड़ा. श्रीलंका की जनता समझदार थी, उसे समझ आ गया कि यह सब चीन के कारण हुआ तो अगली सरकार ने चीन से दूरी बनानी शुरू कर दी. भारत के खिलाफ राजपक्षे सरकार ने कई फैसले किए थे, लेकिन जब श्रीलंका मुसीबत में पड़ा तो भारत ने दिल खोलकर मदद की और आज श्रीलंका और भारत के संबंध फिर से अच्छे हैं.

Advertisement

भूटान पर भी दबाव

भूटान और भारत के संबंध ऐतिहासिक रहे हैं. यहां तक की भूटान की रक्षा की जिम्मेदारी भी भारत उठाता है. चीन और भूटान के बीच सीमा विवाद है. चीन की नजर भूटान की जमीन पर है. भारत के रहते वह ऐसा कर नहीं सकता तो उसने भूटान पर डोरे डालने शुरू किए. सीमा विवाद के नाम पर अलग-अलग तरह के प्रलोभन और डर दिखा रहा है, जिससे भूटान उसकी शर्तों पर समझौता कर ले. भूटाना के राजा इस बात को समझते हैं, इसलिए वह चीन के जाल में अब तक नहीं फंसे हैं, लेकिन चीन का प्रयास जारी है. चीन चाहता है कि भूटान उसके अनुसार फैसले ले और उसके आदेश को माने, जो अब तक भारत के कारण संभव नहीं हो पाया है.

Advertisement

मालदीव की अर्थव्यवस्था चरमराई

चीन की चालबाजी को समझने के लिए मालदीव भी एक बड़ा उदाहरण है. मालदीव में मोहम्मद मुइज्जू की सरकार से पहले जो भी सरकार रही, उसके सभी देशों से अच्छे संबंध रहे. भारत से तो रिश्ते हमेशा से ही अच्छे बने रहे, हालांकि, चीन से भी मालदीव की सभी सरकारों ने संबंधों को बैलेंस किए रखा. मालदीव शांति से प्रगति की राह पर था, लेकिन चीन ने वहां भी दखल दिया और मोहम्मद मुइज्जू की सरकार प्रोपेगेंडा कर बनवा दी. स्थिति यह हो गई मोहम्मद मुइज्जू ने भारत के खिलाफ जहर उगलना शुरू किया. कुछ दिनों तक भारत ने संबंधों की खातिर बर्दाश्त किया लेकिन फिर भारत के लोगों ने मालदीव का बॉयकाट करना शुरू कर दिया. अब हालत यह है कि मालदीव की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ना शुरू हो गया है. अब चीन उसे भी कर्ज के जाल में फंसाएगा और फिर उसकी जमीनों पर कब्जा कर लेगा. मालदीव सरकार चीन की कठपुतली बन गई है और उसके हिसाब से फैसले ले रही है.

Advertisement

पाकिस्तान को बनाया खिलौना

पाकिस्तान तो चीन का पहला प्रयोग था. भारत से अलग होने के बाद पाकिस्तान के नेताओं में जो भारत के प्रति नफरत थी, उसे चीन ने भड़काया और अपने हितों के लिए इस्तेमाल किया. भारत अपनी स्वतंत्र नीति के बल पर विकास के रास्ते पर बढ़ता गया और पाकिस्तान नफरत की आग में चीन की गोद में बैठता गया. स्थिति यह हो गई कि भारत के खिलाफ हर जंग में पाकिस्तान का परोक्ष रूप में साथ देने वाले अमेरिका से भी उसने दुश्मनी कर ली. इससे पहले अमेरिका हर साल पाकिस्तान की आर्थिक तौर पर मदद भी करता था, साथ ही उसके आतंकी कारनामों पर दुनिया को शांत भी कराता था, लेकिन जब पाकिस्तान ने चीन और अमेरिका में से चीन को चुन लिया तो अमेरिका ने भी उसका साथ छोड़ दिया. नतीजा यह हुआ कि पाकिस्तान का बाल-बाल आज चीन के कर्ज में डूबा हुआ है. वह आईएमएफ से कर्ज की भीख मांग रहा है, जिससे चीन के कर्ज का सूद दे सके. चीन के कारण ही उसके कब्जे वाले कश्मीर और बलूचिस्तान में विद्रोह हो रहा है. वहां के नागरिक आरोप लगा रहे हैं कि पाकिस्तान ने चीन को उनकी जमीनें और संसाधन बेच दिए हैं. चीन के अधिकारी उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करते हैं. चीन पहले ही पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का एक भाग ले चुका है. अब उसकी नजर पूरे कश्मीर और बलूचिस्तान पर है.      

पढ़ें-बांग्लादेश के इन 3 के कारण शेख हसीना को देना पड़ा इस्तीफा; जानें कौन हैं ये धुरंधर
  

Featured Video Of The Day
Maharashtra Results 2024: जीत के बाद Mahayuti की Conference में Devendra Fadnavis और Ajit Pawar के बीच में दिखे Eknath Shinde