- बांग्लादेश में आम चुनाव और जनमत संग्रह एक ही दिन फरवरी में आयोजित किए जाएंगे, मोहम्मद यूनुस ने ये ऐलान किया.
- जुलाई चार्टर को लागू करने के लिए जनमत संग्रह कराया जाएगा, जिसमें राजनीतिक और संस्थागत सुधार प्रस्तावित हैं.
- जनमत संग्रह में मतदाताओं से चार सवाल पूछे जाएंगे, जिनके हां जवाब मिलने पर संवैधानिक सुधार परिषद गठित होगी.
बांग्लादेश में अब आम चुनाव और जनमत संग्रह एक ही दिन होंगे, ये ऐलान अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने किया है. उन्होंने गुरुवार को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में ये बात कही. बता दें यह जनमत संग्रह पिछले साल छात्रों के नेतृत्व में हुए आंदोलन के बाद तैयार किए गए 'जुलाई चार्टर' को लागू करने के लिए कराया जाएगा. बांग्लादेश में आम चुनाव फरवरी में होंगे और जनमत संग्रह भी इसी दिन कराया जाएगा. बता दें कि राजनीतिक दल लंबे समय से चुनाव कराने के लिए दबाव बना रहे हैं, जिसके बाद यूनुस ने आम चुनाव का ऐलान किया है.
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आम चुनाव और जनमत संग्रह एक ही दिन
एक रिपोर्ट में मोहम्मद यूनुस के हवाले से कहा गया है कि राष्ट्रीय सहमति आयोग ने जुलाई चार्टर को लागू करने के संभावित तरीकों की रूपरेखा पेश करते हुए दो सिफरिश अंतरिम सरकार के सामने पेश की. जिसमें कहा गया है कि अंतरिम सरकार चार्टर के संवैधानिक सुधार प्रावधानों को लागू करने के लिए विशेष आदेश जारी करेगी, इसके बाद जनमत संग्रह कराया जाएगा.
चार्टर में 30 प्रमुख सुधार प्रस्ताव शामिल
9 महीने की बातचीत के बाद तैयार किए गए इस चार्टर में 30 प्रमुख सुधार प्रस्ताव शामिल हैं, जिनमें द्विसदनीय संसद, पीएम कार्यकाल की सीमाएं, न्यायिक स्वतंत्रता का विस्तार, मज़बूत स्थानीय सरकार और महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाना शामिल है.
क्यों कराया जा रहा है जनमत संग्रह?
मोहम्मद यूनुस ने कहा कि जनमत संग्रह के लिए मतपत्र के साथ ही वोटरों से चार सवालों के जवाब मांगे जाएंगे. उनको इसके जवाब हां या नहीं में देने होंगे. अगर हां के पक्ष में सबसे ज्यादा वोटिंग हुई तो देश में एक संवैधानिक सुधार परिषद का गठन होगा. जो संविधान में संशोधन करेगी. जुलाई चार्टर का मकसद बांग्लादेश की राजनीति और संस्थागत ढांचे में सुधार लाना था.
एनसीपी ने क्यों किया चार्टर का बहिष्कार?
रॉयटर्स के मुताबिक, बांग्लादेश के बहुत से राजनीतिक दलों ने अक्टूबर में इस चार्टर पर साइन किए थे. लेकिन पिछले साल हुए आंदोलन के नेताओं और चार वामपंथी दलों द्वारा बनाए गए एनसीपी ने इसका बहिष्कार कर दिया था. उनका कहना था कि चार्टर के वादों को लागू करने के लिए कोई कानूनी गारंटी नहीं दी गई है.













