- बांग्लादेश की सेना ने हिल्सा मछली को अवैध पकड़ से बचाने के लिए युद्धपोत और गश्ती हेलीकॉप्टर तैनात किए हैं
- हिल्सा मछली अंडे देने के मौसम में बंगाल की खाड़ी से नदियों में लौटती है, जिसे तीन सप्ताह के लिए बैन किया गया
- 4 अक्टूबर से 25 अक्टूबर तक मछली पकड़ने पर प्रतिबंध लगाया गया है और निगरानी चौबीसों घंटे की जा रही है
क्या कोई देश मछली की एक प्रजाति को बचाने के लिए अपनी सेना की जंगी जहाज और सर्विलांस हेलीकॉप्टर को तैनात करता है? अब इसका जवाब भी हां में होगा. बांग्लादेश की सेना ने कहा कि उसने अंडे देने के मौसम के दौरान एक खास प्रजाति की मछली को अवैध रूप पकड़े से बचाने के लिए एक खास सर्विलांस कैंपेन के तहत युद्धपोतों (जंगी जहाज) और गश्ती हेलीकॉप्टरों को तैनात किया है.
एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार इस मछली का नाम है हिल्सा. यह बांग्लादेश की राष्ट्रीय मछली और भारत के पश्चिम बंगाल में भी इसे बहुत पसंद किया जाता है. यह मछली अंडे देने के लिए हर साल बंगाल की खाड़ी से नदियों में लौटती है. बांग्लादेशी अधिकारियों ने शनिवार को कहा कि उन्होंने अंडे देने वाले क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए 4 अक्टूबर से लेकर 25 अक्टूबर तक मछली पकड़ने पर तीन सप्ताह का बैन लगाया है.
गौरतलब है कि बांग्लादेश में लाखों लोग इस मछली पर निर्भर हैं, जिसकी कीमत ढाका में प्रति किलोग्राम 2,200 टका (भारत में लगभग 1600 रुपए) तक हो सकती है.
भारतीय मछली पकड़ने वाले बेड़े गंगा नदी और उसके विशाल डेल्टा के खारे पानी में मछली पकड़ने का काम करते हैं, जिससे कोलकाता के मेगासिटी और पश्चिम बंगाल के व्यापक राज्य में मांग को पूरा किया जाता है, जिसकी आबादी 100 मिलियन से अधिक है. ऐसी मांग को पूरा करने के लिए अत्यधिक मछली पकड़ने से स्टॉक खत्म हो सकता है क्योंकि हिल्सा अंडे देने के लिए वापस लौट आती है.
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील और निचले डेल्टा में बदलाव से मछली भंडार भी प्रभावित हुआ है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते समुद्र के कारण खतरे में है. हालांकि, उन्हें यह भी डर है कि जंगी जहाज भी महत्वपूर्ण समय में स्पॉनिंग हिल्सा को परेशान कर सकते हैं.
बैन के बदले 25 किलो चावल
बांग्लादेश सरकार ने अंडे देने की अवधि के दौरान मछली मारने पर लगाए बैन की भरपाई के लिए प्रति मछली पकड़ने वाले परिवार को 25 किलोग्राम चावल आवंटित किया है. एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार कुछ मछुआरों को मानना है कि यह पर्याप्त नहीं है. 60 वर्षीय मछुआरे सत्तार माझी ने कहा, "ये तीन सप्ताह मछुआरों के लिए बहुत कठिन हैं, क्योंकि हमारे पास जीवित रहने का कोई अन्य साधन नहीं है."