राजनीति नहीं होनी चाहिए, पुलिस को काम करने देना चाहिए, भीड़ द्वारा न हत्या रुक रही है और न ऐसी घटनाओं पर सवाल उठाने के बाद दिए जाने वाले ऐसे नैतिक संदेश रुक रहे हैं. इस तरह से पेश किया जा रहा है कि यह सब राजनीतिक और नफरत की सोच के दायरे से बाहर की घटना है जो कानून और व्यवस्था की समस्या है. अगर है भी तो भी अलवर में एक साल पहले भी पहलू खान की हत्या हुई थी. क्या किसी पर आरोप साबित हुआ. जिन्हें पकड़ा गया वे सब बरी हो चुके हैं. क्यों अलवर में एक साल के भीतर दो लोगों की हत्या होती है. क्यों इन दोनों के नाम पहलू खान और रकबर खान हैं. 17 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने भी भीड़ की हिंसा पर कड़ी टिप्पणी की थी, और ऐसे मामले में पुलिस कैसे काम करेगी, उसकी जवाबदेही का पूरा ढांचा तय किया था, पुलिस काम कर रही होती तो सुप्रीम कोर्ट को इतनी सख्ती नहीं करनी पड़ती.