2014 के चुनाव में एक दिलचस्प राजनीतिक और वैचारिक दावेदारी अंगड़ाई ले रही है। पिछड़े और दलित जनाधार के नेतृत्व को समाजवादी मोर्चे से निकालकर हिंदुत्व या राष्ट्रवादी जद में लाने की कवायद तेज हो गई है। विकास की सान पर जाति की धार तेज की जा रही है। शुरुआत बीजेपी के नेताओं ने मोदी को पिछड़ा बता कर की और अब खुद मोदी बिहार-यूपी की रैलियों में खुद को पिछड़ा बताने लगे हैं।