प्रकाशित: जनवरी 27, 2013 07:30 AM IST | अवधि: 17:17
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दिन के उजाले में हो सकता है भीड़ एक जैसी लगे, लेकिन जैसे ही सूरज छिपता है, नदी के दो किनारों का फर्क बड़ा हो जाता है। संगम की ठंडी रेत पर कल्पवास करते लोगों की उम्मीदें काफी हद तक पानी में दिखती भुकभुकिया रंगीन रोशनी की परछाई सरीखी है, जो इस लोक के बाद एक सुधरे और बेहतर परलोक की उम्मीद बंधाती है।