ये सुनकर यकीन करना थोड़ा मुश्किल लगे कि देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम में भी विशेष तौर पर सक्षम या दिव्यांगों की भूमिका हो सकती है लेकिन इसरो के रॉकेट के लिए बेहद खास कलपुर्जे दिव्यांगों ने ही बनाए हैं. अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस के मौके पर हम आपके पास लेकर आए हैं राधाम्बिका एस की कहानी, जो महज दो साल की उम्र में पोलियो की शिकार हो गईं. आज उनकी कंपनी सिववासु इलेक्ट्रॉनिक्स प्रिसिजन प्रिंटेड सर्किट बोर्ड बनाती है जिसकी मदद से भारत चांद और मंगल तक पहुंचा. एक ऐसी महिला जिसके हस्ताक्षर देश के हर रॉकेट और सैटेलाइट पर हैं, उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है. साइंस एडिटर पल्लव बागला की खास रिपोर्ट...