अगले तीन चरण के चुनाव मुख्य रूप से हिन्दी भाषी प्रदेशों में ही हो रहे हैं. लेकिन इन प्रदेशों में हिन्दी की ही हालत ख़राब है.हिन्दी बोलने वाले नेताओं के स्तर पर क्या ही चर्चा की जाए, उनके भाषणों में करुणा तो जैसे लापता हो गई है.आक्रामकता के नाम पर गुंडई के तेवर नज़र आते हैं.सांप्रदायिकता से लैस हिन्दी ऐसे लगती है जैसे चुनावी रैलियों में बर्छियां चल रही हों.चुनाव के दौरान बोली जाने वाली भाषा का मूल्यांकन हम बेहद सीमित आधार पर करते हैं. यह देखने के लिए कि आचार संहिता का उल्लंघन हुआ है या नहीं.मगर भाषा की भी तो आचार संहिता होती है. उसका अपना संसार होता है,संस्कार होता है. ज्ञान का भंडार होता है. उन सबका क्या. आज वर्धा के हिन्दी विश्वविद्यालय के एक छात्र ने व्हाट्स एप किया कि उत्तर प्रदेश में इस बार दसवीं और बारहवी में दस लाख छात्र फेल हो गए हैं. 26 अप्रैल को यूपी बोर्ड का रिज़ल्ट आया है.