इस सवाल पर लौट आइये इससे पहले कि हम जवाब देने के बजाए नज़रें चुराने लगें. राम का नाम साधना और अराधना के लिए है या इसके नाम पर हत्या करने के लिए है. अभी भले लगता हो कि हमारी ड्राइंग रूम से दूर शायद दिल्ली से बहुत दूर कुछ लोगों का यह काम है और भारत जैसे देश में अपवाद हैं तो आप गलती कर रहे हैं. इनके पीछे की सियासी खुराक कहां से आ रही है, आप इतने भी भोले नहीं है कि सब बताना ही पड़े. अगर इसे नहीं रोका गया, ऐसे लोगों को राजनीतिक सिस्टम से बाहर नहीं किया गया तो आप ड्राइंग रूम में उतने शरीफ़ नहीं लगेंगे. जिन लोगों ने तबरेज़ को मारा है या सुबोध कुमार सिंह को मारा है उन्हें हत्यारा बनने से बचाया जा सकता था. एक तबका है जो दिल्ली मुंबई में बैठकर टीवी चैनलों और ट्विटर व्हाट्सएप के ज़रिए इन लोगों को उकसा रहा है. खुराक दे रहा है. मान्यता दे रहा है. हमें भीड़ की हत्याओं की जांच और गहराई से करनी चाहिए. हत्यारे को पकड़ने के साथ यह पता लगाना चाहिए कि क्या इन्हें किसी तरह की सियासी सोच ने ऐसा करने के लिए मजबूर किया. वे किन लोगों की सोहबत में थे, उनके दोस्त कौन थे, उनकी बातें क्या थीं. यह बीमारी ड्राइंग रूम देखकर रास्ता नहीं बदलती है बल्कि कहीं से भटकती हुई ड्राइंग रुम में आ जाती है जहां आपका टीवी सेट लगा है.