लखनऊ यूनिवर्सिटी में ऐंथ्रोपॉलोजी के प्रोफ़ेसर नदीम हसनैन बताते हैं कि मुस्लिम वोटर दो अलग-अलग नज़रियों से वोट करने की सोचते हैं. एक का वास्ता जाति, विचारधारा, उम्मीदवार की पक्षधरता और स्थानीय समीकरणों से है. जब ये नज़रिया हावी रहता है तो मुस्लिम वोट नाटकीय ढंग से बंट जाते हैं, लेकिन दूसरा नज़रिया वोटरों को मुस्लिम अल्पसंख्यकों को उनकी पहचान से जोड़ता है- जहां उन्हें लगता है कि अपनी पहचान सुरक्षित रखना ज़रूरी हो गया है.