यह सफर महज रोजाना स्कूल जाने भर का नहीं है, बल्कि यह सफर है बेहतर भविष्य के लिए। एक ऐसा सफर जिसमें गांव के सरकारी स्कूलों में जाने वाले हजारों बच्चे शामिल हैं, लेकिन वहां स्कूल नाम मात्र के हैं। वहां न तो टीचर हैं, न पीने का पानी, न टॉयलेट यहां तक कि कमरों की छतें भी गायब हैं। इन बेजान स्कूलों में जान डालने के लिए हमारी मुहिम सपोर्ट माई स्कूल आ पहुंची है अपने तीसरे साल में...