रवीश कुमार का प्राइम टाइम : लॉकडाउन की नौबत क्यों, हटाने का फ़ैसला कब हो?

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  • प्रकाशित: अप्रैल 27, 2020
24 मार्च से लेकर 30 मार्च और अप्रैल के पहले हफ्ते तक भारत के न्यूज चैनलों और अखबारों में तबलीगी जमात को लेकर जो कवरेज हुई है उसे फिर से देखने की जरूरत है. इस कवरेज के बहाने झूठी खबरें और अफवाहों को हवा दी गयी. एक समुदाय विशेष के खिलाफ नफरत फैलायी गयी. नतीजा ये हुआ कि अच्छे भले लोग भी सब्जी किससे खरीदनी है बाल किससे कटवाना है इसके लिए उससे धर्म पूछने लगे. यहीं नहीं सरकार की तरफ से भी इसे हवा देने के लिए संक्रमित मरीजों की संख्या में तबलीगी जमात की अलग से संख्या दी जाने लगी. इस कारण लोगों में और अधिक धारणा फैलने लगी. जबकि वो समय था जब सरकार की जवाबदेही तय की जाती लेकिन मीडिया ने उन सवालों पर पर्दा डालने के लिए तबलीगी को सहारा बना लिया. इसका नतीजा क्या निकला, संप्रदायिक हालात कुछ और खराब हुए और विश्व स्तर पर इन खबरों से हम सब लोगों को कुछ शर्मिंदा होना पड़ा. अगर शर्मिंदा होते हैं तो! लेकिन हुए तो हैं कुछ, तब ही तो जिन चैनलों ने जिसकी हवा दी अब वहीं कह रहे हैं कि 2-3 के कुछ हो जाने से आप पूरे समुदाय को बदनाम नहीं कर सकते हैं. करने वाले भी वहीं थे. दिल्ली के सुल्तानपुरी सेंटर में कोरोना से ठीक हो चुके 4 तबलीगी ने प्लाज्मा दिया है. 300 के लगभग तबलीगी ने प्लाज्मा देने की बात कही है. इधर सोमवार को प्रधानमंत्री ने चौथी बार राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की है. जिसमें उन्होंने कहा कि तालाबंदी के कारण अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता करने की जरूरत है. प्रधानमंत्री भले कहें कि चिंता की बात नहीं है लेकिन मध्यम वर्ग अब धीरे-धीरे चिंतित होने लगे हैं.

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