इन दिनों तनाव बहुत है. किधर से गोली आ जाए किधर से कोरोना आ जाए. हम जितना भी सीरियस होने का प्रयास करते है उतना ही कुछ नहीं होता. दरसल अब यही होना है कि कुछ नहीं होना है. अब देखिए बहुत दिनों से राष्ट्रीय भावना आहत नहीं हो रही है. इस कारण एंकरों को माफी मांगनी पड़ रही है. क्योंकि जुबान फिसल जा रही है. ऐसा वो कहते हैं अपने माफी नामे में. जब राष्ट्रीय भावना आहत होती है और माहौल बन जाता है तब जुबान का कोई हिसाब नहीं करता है क्योंकि जुबान से ही बदला लेना होता है. भावना और आंकाक्षा में अंतर है इस कारण दो अलग-अलग शब्द बने हैं. पूरे देश में चीनी समानों के बहिष्कार की बात हो रही है. लेकिन सवाल यह है कि क्या चीनी सामान का बहिष्कार हम कर पाएंगे? क्या यह समस्या का हल है?