क्या नौकरी का सवाल भारत की राजनीति में केंद्रीय मुद्दा बन सकता है? 21वीं सदी के दो दशकों में बिहार का चुनाव पहला चुनाव है जब सरकारी नौकरी को लेकर नीतीश कुमार की जदयू को छोड़ दें, तो कई दल अलग अलग दावे कर रहे हैं. बेशक इस मुद्दे ने राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावों में सर उठाया था लेकिन बिहार चुनाव तक आते आते सरकारी नौकरी मुख्य मुद्दों में से एक हो चुकी है. इसमें भी अंतर है. राजद, कांग्रेस और लोजपा एक तरफ सरकारी नौकरी की बात करते हैं तो भाजपा रोज़गार की बात करती है. स्वरोज़गार की. नौकरी बनाम रोज़गार की इस धारणा को बिहार के नौजवान साफ समझते हैं. इस मुद्दे को आप 10 लाख या 19 लाख की संख्या के कारण मरा हुआ मुद्दा घोषित न करें. क्योंकि यह मुद्दा चुनाव के बाद भी रहेगा, नतीजा जो हो. 2017 में जब प्राइम टाइम में नौकरी सीरीज़ शुरू हुई थी, कई हफ्तों तक सीरीज़ चलने के बाद भी सरकारों ने अनदेखा कर दिया. उन्हें लगा कि भारत के नौजवानों की जवानी की कहानी खत्म हो चुकी है.