प्रधानमंत्री के ऐलान पर भरोसा होता तो किसान लखनऊ में महापंचायत के लिए जमा नहीं होते, यहां भी उनकी यही मांग है कि फैसला बातचीत से हो. सरकार को अब कमेटी की याद आई है. अगर इसी बिल को संसद की स्टैंडिंग कमेटी में भेजा गया होता तो सांसदों की कमेटी अलग-अलग किसानों से बात कर रही होती.