अभिव्यक्ति की आज़ादी सिर्फ धार्मिक पागलनपन के कारण संकट में नहीं है। सरकार, सेना, पूंजीपति और कई बार मीडिया के कारण भी संकट में है। पेरिस की घटना से हम किन सवालों से मुख्य रूप से टकरा रहे हैं। आखिर धर्म के नाम पर हम इस पागलपन से कैसे निपटें। क्या धर्म का अनादर कर या अभिव्यक्ति की सीमा तय कर। क्या हम धर्म के लिए आलोचना की जगह बनाने में नाकाम रहे हैं।