जब भी हम सुनते हैं कि भाषाएं मर रही हैं. तो आम समाज में इन खबरों को लेकर किसी को अफसोस करते हुए नहीं देखा गया. लोगों को लड़ते हुए जरूर देखा कि हमारी भाषा आठवीं अनुसूची में नहीं आई और उनकी भाषा क्यों आ गई. कई बार लगता है कि राजनीति के बीच भाषा को लेकर जो मुद्दे आते हैं उनसे भाषा के प्रति हमारी समझ का बहुत भला नही्ं होता. शायद हम जानते भी नहीं कि एक भाषा मरती है तो उसके साथ क्या-क्या मर जाता है.