संविधान दिवस के मौके पर संसद के दोनों सदनों में बहस अच्छी हुई, मगर कई बार यह बहस डॉक्टर आंबेडकर पर दावेदारी की होड़ में बदलती लगी। सबने अपने अपने हिसाब से डॉक्टर आंबेडकर के कथनों का चुनाव किया, और ज्यादातर मौके पर उनका इस्तेमाल दूसरे पर हमला करने में किया गया।