सरकारी स्कूलों की हालत किसी से छिपी नहीं है. गरीब लोगों के बच्चों के स्कूल कहे जाने वाले सरकारी स्कूलों में अब तो गरीब भी अपने बच्चे भेजने से कतराता है. भले ही मजदूरी के घंटे बढ़ा देंगे पर बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं भेजते. हालांकि समय-समय पर कभी कोर्ट द्वारा तो कभी किसी अधिकारी द्वारा इस व्यवस्था को चुनौती देने की कोशिश की जाती है. अगस्त 2015 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक आदेश आया था कि सभी सरकारी कर्मचारियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे. कई बार ऐसे आदेश सरकारी स्कूलों की दुर्दशा सुधारने में उत्साहित कर देते हैं. 2011 में कोयम्बटूर के जिलाधिकारी और 2017 में यूपी के बलरामपुर के जिलाधिकारी ने अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में डाला. ये अच्छी बात है. लेकिन, क्या कलेक्टर के बच्चों को सरकारी स्कूल भेज देने से सरकारी स्कूलों की हालत में सुधार हो जाएगा.