गुरुवार शाम सात बजे हर रास्ता राष्ट्रपति भवन जा रहा होगा. वहां एक ही टीवी चैनल होगा- दूरदर्शन- लेकिन सारे चैनलों पर शपथ ग्रहण की तस्वीर होगी. होनी भी चाहिए. अगर चुनाव लोकतंत्र का सबसे बड़ा यज्ञ है तो शपथ ग्रहण को उसकी आहूति मानना चाहिए. ये अवसर पूरे देश का होता है. दलों और राजनीतिक प्रतिबद्धताओं से ऊपर होता है. लेकिन ममता बनर्जी को लग रहा है कि मोदी सरकार इस पवित्र अवसर का अवमूल्यन कर रही है. उसे अपने राजनीतिक हिसाब-किताब के लिए इस्तेमाल कर रही है. क्योंकि बीजेपी ने शपथ ग्रहण में पश्चिम बंगाल से 54 परिवारों को न्योता दिया है- ये बताते हुए कि ये उसके मारे गए कार्यकर्ताओं के परिवार हैं. ममता का कहना है कि राजनीतिक हत्या नहीं हुई है. ममता पहले शपथ ग्रहण में आने को तैयार थीं, लेकिन जब उन्होंने मीडिया पर ये ख़बर देखी तो इनकार कर दिया.