कुछ हिंदू बंटे थे, कुछ मुसलमान बंटा था. जब भावनाओं का हुआ था बंटवारा तब धर्म के आधार पर इंसान बंटा था. फिर जमीन बंटी थी, आसमान भी बंटा था और यहीं से शुरु हुई थी 1947 में भारत पाकिस्तान के बंटवारे की वो कहानी जिसमें ब्रिटिश भारत का झाडू, मेज, कुर्सी, टाइप राइटर,पगड़ी, बल्ब, पेन, कमोड, साइकिल, लाठी, ग्लास, जग, पेंसिल, पिन कुशन, कलमदान, और छोटा- बड़ा हर सामान बंटा था. अब अंदाजा लगाइए कि जब एक घर का बंटवारा होता है तो कितना मुश्किल होता है आंगन की दीवार उठाना...कितना मुश्किल होता है पुरखों की निशानियां मिटाना...कितना मुश्किल होता है चूल्हे चौके का बंट जाना और कितना मुश्किल होता उदास आंखों से निहारती मां को समझाना। वैसे ही कितना मुश्किल रहा होगा इतने बड़े देश का जर्रा-जर्रा, पुर्जा-पुर्जा सामानों का बंट जाना। आखिर ये हुआ कैसे होगा? कैसे हुई होगी बंटवारे की पंचायती? कौन थे बंटवारे के पंच? पंचों को क्यों बंद कर दिया गया था एक कमरे में? लाठी, ग्लास, जग, पेंसिल, पिन कुशन के लिए क्यों बच्चों की तरह झगड़ते थे पंच? नौबत हाथापाई और जूतम पैजार तक क्यों आ जाती थी? कहा जाता है कि बंटवारे की बात सुनते ही देश भर के सरकारी दफ्तरों के अधिकारी दफ्तरों में लगे सामान जैसे टाइपराइटर, मेज-कुर्सियां, सोफा वगैरह छुपाने, चुराने और बदलने लगे थे. इस वीडियो में हम भारत-पाक बंटवारे (India-Pakistan Partition in 1947) की यही अजीबोगरीब कहानी सुनायेंगे. Indpendence Day के मौके पर सुनिए वो कहानी जिसे डॉमिनिक लॉपियर (Dominique Lapierre) और लैरी कॉलिन्स (Larry Collins) ने अपनी किताब 'फ्रीडम एट मिडनाइट' (Freedom At Midnight) में बयां किया है...