नोटबंदी के बाद तमाम तरह के दावे किए गए. आतंकवाद से लेकर नक्सलवाद ख़त्म होने का. लोगों को बताया गया कि ये बेइमानों पर कार्रवाई है. लेकिन बैंक की लंबी कतार में सबसे ज़्यादा दिखा और पिसा तो वो था गरीब आदमी. कई ऐसे परिवार जिन्होंने अपनों को खो दिया. आज भी वो नोटबंदी को याद कर दुखी हो जाते हैं, क्योंकि इस फैसले ने उनके घर में अंधेरा ला दिया. मोनीदिपा उन परिवारों से मिलने करीब पौने दो साल बाद फिर पहुंची और उनसे बात की.