क्या आपको डॉ. पंकज नारंग की याद है? दिल्ली के विकासपुरी इलाक़े में एक भीड़ ने डॉ. नारंग को उनके घर के सामने पीट-पीट कर मार डाला था. ये 23 मार्च, 2016 की बात है. डॉ. नारंग का बेटा क्रिकेट खेल रहा था, गेंद लाने घर से बाहर निकला, एक मोटरसाइकिल से टकराते-टकराते बचा, मोटरसाइकिल वालों से डॉक्टर साहब की बहस हुई. डॉक्टर साहब को उन्होंने देख लेने की धमकी दी. इसके बाद डॉ. साहब ने पुलिस को फोन करने की कोशिश की- फोन नहीं लगा. ख़ुद बाहर देखने गए कि पुलिस की वैन मिल जाए, नहीं मिली. घर लौटे तो एक भीड़ उनके घर पर पथराव कर रही थी. उस भीड़ ने इनको मारना शुरू किया, बुरी तरह मारा. पत्नी-बच्चे चिल्लाते रहे, लेकिन किसी पड़ोसी ने हिम्मत नहीं की कि वो उनको बचाने आए. अस्पताल ले जाते, ले जाते डॉ. नारंग की मौत हो गई. मॉब लिंचिंग की कहानी यहां ख़त्म नहीं शुरू होती है क्योंकि इसके बाद मीडिया पर उन लोगों की मॉब लिंचिंग चल पड़ी जो इसे एक अपराध की तरह देख रहे थे, इसमें जबरन सांप्रदायिक पहलू नहीं देख रहे थे. इस भीड़ ने आरोप लगाया कि खुद को सेक्युलर मानने वाला मीडिया इसकी खबर नहीं ले रहा. सच्चाई क्या थी? तीन साल बाद हम ये कहानी क्यों याद कर रहे हैं? क्योंकि हमने डॉ पंकज नारंग की पत्नी से बात की है. उस महिला से जिसकी आंख के सामने भीड़ ने उसके पति को मार डाला.