एम जे अकबर पर 14 महिला पत्रकारों के लगाए आरोप और उनके जवाब की स्टोरी को लेकर एक अध्ययन यह भी करना चाहिए कि हिन्दी अखबारों ने अकबर पर लगे आरोपों का किस पन्ने पर और कितना छोटा सा छापा और जब खंडन आया तो उनके खंडन को कहां छापा और कितनी प्रमुखता से छापा. मीडिया विजील वेबसाइट पर संजय कुमार सिंह इसका अध्ययन कर एक लेख भी लिखा है. बता रहे हैं कि जिन हिन्दी अखबारों ने अकबर पर लगे आरोपों की खबर को अनदेखा कर दिया उनके यहां अब अकबर के बयान की खबर चार और पांच कालम में छपी है. राजस्थान पत्रिका और दैनिक भास्कर, नवोदय टाइम्स,नवभारत टाइम्स, दैनिक सवेरा को छोड़ कई बड़े अख़बारों ने इस खबर को तहखाने में भेज दी. पाठकों तक खबर पहुंची भी नहीं. कुछ अखबारों ने छापने की खानापूर्ति की. भीतर के पन्ने पर तीन चार लाइन में खबर छाप दी. इस तरह हिन्दी के पाठकों का बड़ा समूह इस ख़बर के सभी पहलुओं को जानने से वंचित रह गया. 15-20 पन्ने के अखबारों में विदेश राज्य मंत्री से जुड़ी खबर रूटीन टाइप छपे या मामूली समझ कर छपे ही नहीं, इसका अध्ययन किया जा सकता है. जबकि इन्हीं अखबारों में मी टू अभियान से जुड़ी अन्य खबरें खूब छपी हैं.