कोई दस-दस दिन पैदल कर चलकर म्यांमार सीमा पर पहुंचा हो, वहां से नाव से बांग्लादेश पहुंचा हो, उसके घर उजड़ गए हों तो उसे देखने का एक नज़रिया मानवतावादी भी हो सकता है. मीडिया और राजनीतिक क्षेत्र में इसे हिन्दू मुस्लिम एंगल से देखा गया लेकिन इंसानियत का नज़रिया पीछे रह गया. खालसा एड के लोग बांग्लादेश पहुंच कर 50,000 लोगों की मदद करने लगे.