हमने कब ऐसे भारत की कल्पना कर ली कि किस यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर कौन होगा यह सत्ताधारी दल का छात्र संगठन अखिल विद्यार्थी परिषद तय करेगा और यूनिवर्सिटी मान लेगी. क्या आप वाकई ऐसा भारत चाहते थे, चाहते थे तो इस बात को खुलकर क्यों नहीं कहा या क्यों नहीं कहते हैं कि यूनिवर्सिटी में या तो पढ़ाने के लिए प्रोफेसर ही नहीं होंगे और अगर होंगे तो वही होंगे जिसकी मंज़ूरी एबीवीपी की चिट्ठी से मिलेगी. सबसे अच्छी बात है कि जब यह बात पब्लिक में सामने आई तो पब्लिक को यह बात बात के लायक ही न लगी. ऐसा कुछ नही हुआ है कि पहाड़ टूट जाए जब भीड़ लोगों को मार रही थी तब पहाड़ नहीं टूटा तो एक प्रोफेसर के लिए पहाड़ क्या, गिट्टी भी नहीं छिटकेगी, ऐसा मेरा विश्वास है.